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प्रेमचन्द की कहानियाँ 13

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :159
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9774

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का तेरहवाँ भाग


रात के बारह बज चुके थे। रानी चंद्रकुँवरि अपने निवास-भवन के ऊपर छत पर खड़ी गंगा की ओर देख रही थी और सोचती थी-लहरें क्यों इस प्रकार स्वतंत्र हैं? उन्होंने कितने गाँव और नगर डुबाए हैं, कितने जीव-जंतु तथा द्रव्य निगल गई हैं; किंतु फिर भी वे स्वतंत्र हैं। कोई उन्हें बंद नहीं करता। इसलिए न कि वे बंद नहीं रह सकतीं। वे गरजेंगी, बल खाएँगी और बांध के ऊपर चढ़कर उसे नष्ट कर देंगी। अपने जोर से उसे बहा ले जाएँगी।

यह सोचते-विचारते रानी गादी पर लेट गई। उसकी आँखों के सामने पूर्वावस्था की स्मृतियाँ एक मनोहर स्वप्न की भाँति आने लगीं। कभी उसकी भौंह की मरोड़ तलवार से भी अधिक तीव्र थी और उसकी मुस्कराहट बसंत की सुगंधित समीर से भी अधिक प्राण-पोषक, किंतु हाय अब इनकी शक्ति हीनावस्था को पहुँची! रोवे तो अपने को सुनाने के लिए, हँसे तो अपने को बहलाने के लिए। यदि बिगड़े तो किसी का क्या बिगाड़ सकती है और प्रसन्न हो तो किसी का क्या बना सकती है? रानी और बाँदी में कितना अंतर है? रानी की आँखों से आँसू के बूँद झरने लगे, जो कभी विष से अधिक प्राणनाशक और अमृत से अधिक अनमोल थे। वह इसी भाँति अकेली, निराश कितनी बार रोई थी, जबकि आकाश के तारों के सिवा और कोई देखने वाला न था।

इसी प्रकार रोते-रोते रानी की आँख लग गई। उसका प्यार, कलेजे का टुकड़ा कुँवर दलीपसिंह, जिसमें उसके प्राण बसते थे, उदास-मुख आकर सामने खड़ा हो गया। जैसे गाय दिन भर जंगलों में रहने के पश्चात् संध्या को घर आती है और अपने बछड़े को देखते ही प्रेम और उमंग से मतवारी होकर, स्तनों में दूध भरे, पूँछ उठाए, दौड़ती है, उसी भाँति चंद्रकुँवरि अपने दोनों हाथ फैलाए अपने प्यारे कुँवर को छाती से लपटाने के लिए दौड़ी, परंतु आँख खुल गई और जीवन की आशाओं की भाँति वह स्वप्न भी विनष्ट हो गया। रानी ने गंगा की ओर देखा और कहा- मुझे भी अपने साथ लेती चलो। इसके बाद रानी तुरंत छत से उतरी। कमरे में एक लालटेन जल रही थी। उसके उजाले में उसने एक मैली साड़ी पहनी, गहने उतार दिए, रत्नों के एक छोटे से बक्स को और एक तीव्र कटार को कमर में रखा। जिस समय वह बाहर निकली, नैराश्यपूर्ण साहस की मूर्ति थी।

संतरी ने पुकारा। रानी ने उत्तर दिया- ''मैं हूँ झंगी।''

''कहाँ जाती है? ''

''गंगाजल लाऊँगी। सुराही टूट गई। रानी जी पानी माँग रही हैं।''

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