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प्रेमचन्द की कहानियाँ 14

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :163
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9775

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का चौदहवाँ भाग


सेवती- तो फिर खड़े क्या कर रहे हो? आगरे वाले की दुकान पर आदमी भेजो।

कमला- तुम्हारे लिए क्या लाऊं, भाभी?

सेवती- दूध के कुल्हड़।

कमला- और भैया के लिए?

सेवती- दो-दो लुगइयाँ।

यह कहकर दोनों ठहका मारकर हँसने लगे।

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7. डिमांस्ट्रेशन

महाशय गुरुप्रसाद जी रसिक जीव हैं, गाने-बजाने का शौक है, खाने-खिलाने का शौक है; पर उसी मात्रा में द्रव्योपार्जन का शौक नहीं है। यों वह किसी के मोहताज नहीं हैं। भले आदमियों की तरह रहते हैं। और हैं भी भले आदमी; मगर किसी काम में चिमट नहीं सकते। गुड़ होकर भी उनमें लस नहीं है। वह कोई ऐसा काम उठाना चाहते हैं जिसमें चटपट क़ारूँ का खजाना मिल जाये और हमेशा के लिए बेफ्रिक हो जाएँ। बैंक से छः माही सूद चला आए, खाएँ और मजे से पड़े रहें। किसी ने सलाह दी, नाटक-कंपनी खोलो। उनके दिल को बात जम गयी। मित्रों को लिखा- मैं ड्रामेटिक कम्पनी खोलने जा रहा हूँ आप लोग ड्रामें लिखना शुरू कीजिए।

कम्पनी का प्रास्पेक्टस बना, कई महीने उसकी खूब चर्चा रही, कई बड़े-बड़े आदमियों ने हिस्से खरीदने के वादे किए, लेकिन न हिस्से बिके न कम्पनी खड़ी हुई। हाँ, इसी धुन में गुरुप्रसाद जी ने एक नाटक की रचना कर डाली, और यह फिक्र हुई कि इसे किसी कम्पनी को दिया जाए। लेकिन यह तो मालूम ही था कि कम्पनी वाले एक ही घाघ होते हैं। फिर हरेक कम्पनी में उसका एक नाटककार भी होता है। वह कब चाहेगा कि उसकी कम्पनी में किसी बाहरी आदमी का प्रवेश हो। वह इस रचना में तरह-तरह के ऐब निकालेगा और कम्पनी के मालिकों को भड़का देगा। इसलिए प्रबंध किया गया कि मालिकों पर नाटक का कुछ ऐसा प्रभाव जमा दिया जाए कि नाटककार महोदय की कुछ दाल न गल सके। पाँच सज्जनों की एक कमेटी बनाई गयी। उसमें सारा प्रोग्राम विस्तार के साथ तय किया गया और दूसरे दिन पाँचों सज्जन गुरुप्रसाद जी के साथ नाटक दिखाने चले। ताँगे आ गये। हारमोनियम तबला आदि सब उस पर रख दिये गये क्योंकि नाटक का डिमांस्ट्रेशन करना निश्चित हुआ था।

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