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प्रेमचन्द की कहानियाँ 14

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :163
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9775

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का चौदहवाँ भाग


सहसा विनोद बिहारी ने कहा- यार, ताँगे पर जाने में तो कुछ बदरोबी होगी। मालिक सोचेगा, यह महाशय यों ही हैं। इस समय दस-पाँच रुपये का मुँह नहीं देखना चाहिए मैं तो अंग्रेजों की विज्ञापनबाजी का कायल हूँ। कि रुपये में पंद्रह आने उसमें लगाकर शेष एक आने में रोजगार करते हैं। कहीं से दो मोटरे मँगानी चाहिए।

रसिकलाल बोले- लेकिन किराए की मोटरों से यह बात न पैदा होगी। जो आप चाहते हैं। किसी रईस से दो मोटरें माँगनी चाहिए, मारिस हो या नये चाल की आस्टिन।

बात सच्ची थी। भेख से भीख मिलती है विचार होने लगा किस रईस से याचना की जाए? अजी वह महा खूसट है। सबेरे उसका नाम ले लो, तो दिन भर पानी न मिले। अच्छा, सेठजी के पास चलें तो कैसा? मुँह धो रखिए उनकी मोटरें अफसरों के लिए रिजर्व हैं, अपने लड़के तक को कभी बैठने नहीं देता, आपको दिए देता है। तो फिर कपूर साहब के पास चलें। अभी उन्होंने नई मोटर ली है। अजी उसका नाम लो, कोई-न-कोई बहाना करेगा। ड्राइवर नहीं है मरम्मत में है।

गुरुप्रसाद ने अधीर होकर कहा- तुम लोगों ने तो व्यर्थ का बखेड़ा खड़ा कर दिया। ताँगों पर चलने में क्या हर्ज था?

विनोदबिहारी ने कहा- आप तो घास खा गए हैं नाटक लिख लेना दूसरी बात है और मुआमले को पटाना दूसरी बात है। रुपये पृष्ठ सुना देगा, अपना-सा मुँह लेकर रह जाओगे।

अमरनाथ ने कहा- मैं तो समझता हूँ मोटर के लिए किसी राजा रईस की खुशामत करना बेकार है। तारीफ तो जब है, पाँव-पाँव चलें और वहाँ ऐसा रंग जमाये कि मोटर से भी ज्यादा शान रहे।

विनोदबिहारी उछल पड़े। सब लोग पाँव-पाँव चले। वहाँ पहुँचकर किस तरह बातें शुरू होंगी। किस तरह तारीफों के पुल बाँधे जाएँगे, किस तरह ड्रामेटिस्ट साहब को खुश किया जाएगा, इस तरह बहस होती जाती थी।

वे लोग कम्पनी के कैम्प में कोई दो बजे पहुँचे। वहाँ मालिक साहब, उनके ऐक्टर नाटककार सब पहले ही से उनका इन्तज़ार कर रहे थे। पान, इलायची सिगरेट मँगा लिये गये थे।

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