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प्रेमचन्द की कहानियाँ 15

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :167
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9776

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का पन्द्रहवाँ भाग


'तुम्हें कष्ट हो रहा है, लाओ मैं झल लूँ।'

'यह कैसी बात है लालाजी! आप हमारे दरवाजे पर आये हैं। क्या इतनी खातिर भी न करने दीजियेगा। और हम किस लायक हैं। इधर कहीं दूर जाना है? अब तो बहुत देर हो गई। कहाँ जाइएगा।'

सेठजी ने पापी आँखों को फेर कर और पापी मन को दबा कर कहा, 'यहाँ से थोड़ी दूर पर एक गाँव है, वहीं जाना है। साँझ को इधर ही से लौटूँगा।'

सुन्दरी ने प्रसन्न होकर कहा, 'तो फिर आज यहीं रहिएगा। साँझ को फिर कहाँ जाइएगा। एक दिन घर के बाहर की हवा भी खाइए। फिर न जाने कब मुलाकात होगी।'

इक्केवाले ने आकर सेठजी के कान में कहा, 'पैसे निकालिए तो दाने-चारे का इन्तजाम करूँ।'

सेठजी ने चुपके से अठन्नी निकालकर दे दी।

इक्केवाले ने फिर पूछा, 'आपके लिए कुछ मिठाई लेता आऊँ? यहाँ आपके लायक मिठाई तो क्या मिलेगी, हाँ मुँह मीठा हो जायगा।'

सेठजी बोले, 'मेरे लिये कोई जरूरत नहीं, हाँ बच्चों के लिए यह चार आने की मिठाई लिवाते आना।

चवन्नी निकालकर सेठजी ने उसके सामने ऐसे गर्व से फेंकी मानो इसकी उनके सामने कोई हकीकत नहीं है। सुन्दरी के मुँह का भाव तो देखना चाहते थे; पर डरते थे कि कहीं वह यह न समझे, लाला चवन्नी क्या दे रहे हैं, मानो किसी को मोल ले रहे हैं।

इक्केवाला चवन्नी उठाकर जा ही रहा था कि सुन्दरी ने कहा, 'सेठजी की चवन्नी लौटा दो। लपककर उठा ली, शर्म नहीं आती। यह मुझसे रुपया ले लो। आठ आने की ताजी मिठाई बनवाकर लाओ।' उसने रुपया निकालकर फेंका! सेठजी मारे लाज के गड़ गये। एक इक्केवान की भठियारिन जिसकी टके की भी औकात नहीं, इतनी खातिरदारी करे कि उनके लिए पूरा रुपया निकालकर दे दे, यह भला वह कैसे सह सकते थे। बोले-'नहीं-नहीं, यह नहीं हो सकता। तुम अपना रुपया रख लो। (रसिक आँखों को तृप्त करके) मैं रुपया दिये देता हूँ। यह लो, आठ आने की ले लेना।'

इक्केवान तो उधर मिठाई और दाना-चारे की फिक्र में चला, 'इधर सुन्दरी ने सेठ से कहा, वह तो अभी देर में आयेगा लाला, तब तक पान तो खाओ।'

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