लोगों की राय

कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 17

प्रेमचन्द की कहानियाँ 17

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :281
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9778

Like this Hindi book 9 पाठकों को प्रिय

340 पाठक हैं

प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का सत्रहवाँ भाग


हबीब का हृदय धक से हो उठा। कहीं अमीन पर नारीत्व का रहस्य खुल तो नहीं गया। उसकी समझ में न आया कि उसे क्या जवाब दे। उसका कोमल हृदय तैमूर की इस करुण आत्मग्लानि पर द्रवित हो गया। जिसके नाम से दुनिया काँपती है, वह उसके सामने एक दयनीय प्राणी बना हुआ उसके प्रकाश की भिक्षा मांग रहा है। तैमूर की उस कठोर विकृत शुष्क हिंसात्मक मुद्रा में उसे एक स्निग्ध मधुर ज्योति दिखाई दी, मानो उसका जागृत विवेक भीतर से झांक रहा हो। उसे अपना जीवन, जिसमें ऊपर की स्फूर्ति ही न रही थी, इस विफल उद्योग के सामने तुच्छ जान पड़ा। उसने मुग्ध कंठ से कहा- हजूर इस गुलाम की इतनी कद्र करते हैं, यह मेरी खुशनसीबी है, लेकिन मेरा शाही महल में रहना मुनासिब नहीं।

तैमूर ने पूछा– क्यों?

इसलिए कि जहाँ दौलत ज्यादा होती है, वहा डाके पड़ते हैं और जहाँ कद्र ज्यादा होती है, वहाँ दुश्मन भी ज्यादा होते हैं।

तुम्हारा भी कोई दुश्म‍न हो सकता है।

मैं खुद अपना दुश्मन हो जाउँगा। आदमी का सबसे बड़ा दुश्मन गरूर है।

तैमूर को जैसे कोई रत्न मिल गया। उसे अपनी मनतुष्टि का आभास हुआ। आदमी का सबसे बड़ा दुश्मन गरूर है इस वाक्य को मन-ही-मन दोहरा कर उसने कहा- तुम मेरे काबू में कभी न आओगे हबीब। तुम वह परिंदे हो, जो आसमान में ही उड़ सकता है। उसे सोने के पिंजड़े में भी रखना चाहो तो फड़फड़ाता रहेगा। खैर खुदा हाफिज।

यह तुरंत अपने महल की ओर चला, मानो उस रत्न को सुरक्षित स्थान में रख देना चाहता हो। यह वाक्य पहली बार उसने न सुना था पर आज इससे जो ज्ञान, जो आदेश जो सत्प्रेरणा उसे मिली, वह कभी न मिली थी।

इस्तखर के इलाके से बगावत की खबर आयी है। हबीब को शंका है कि तैमूर वहाँ पहुँचकर कहीं कत्लेआम न कर दे। वह शांतिमय उपायों से इस विद्रोह को ठंडा करके तैमूर को दिखाना चाहता है कि सद्भावना में कितनी शक्ति है। तैमूर उसे इस मुहिम पर नहीं भेजना चाहता लेकिन हबीब के आग्रह के सामने बेबस है। हबीब को जब और कोई युक्ति न सूझी तो उसने कहा- गुलाम के रहते हुए हुजूर अपनी जान खतरे में डालें यह नहीं हो सकता।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book