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प्रेमचन्द की कहानियाँ 17

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :281
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9778

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का सत्रहवाँ भाग


यजदानी ने खुश होकर बेटी को गले लगा लिया। उसकी स्त्री इतनी जल्द आश्वस्त न हो सकी। वह किसी तरह बेटी को अकेली न छोड़ेगी। उसके साथ वह जाएगी।

कई महीने गुजर गए। युवक हबीब तैमूर का वजीर है, लेकिन वास्तव में वही बादशाह है। तैमूर उसी की आँखों से देखता है, उसी के कानों से सुनता है और उसी की अक्ल से सोचता है। वह चाहता है, हबीब आठों पहर उसके पास रहे। उसके सामीप्य में उसे स्वर्ग का-सा सुख मिलता है। समरकंद में एक प्राणी भी ऐसा नहीं, जो उससे जलता हो। उसके बर्ताव ने सभी को मुग्ध कर लिया है, क्योंकि वह इन्साफ से जौ-भर भी कदम नहीं हटाता। जो लोग उसके हाथों चलती हुई न्याय की चक्की में पिस जाते हैं, वे भी उससे सदभाव ही रखते हैं, क्योंकि वह न्याय को जरूरत से ज्यादा कटु नहीं होने देता।

संध्या हो गई थी। राज्य कर्मचारी जा चुके थे। शमादान में मोम की बत्तियाँ जल रही थीं। अगर की सुगंध से सारा दीवानखाना महक रहा था। हबीब उठने ही को था कि चोबदार ने खबर दी- हुजूर जहांपनाह तशरीफ ला रहे हैं। हबीब इस खबर से कुछ प्रसन्न नहीं हुआ। अन्य मंत्रियों की भांति वह तैमूर की सोहबत का भूखा नहीं है। वह हमेशा तैमूर से दूर रहने की चेष्टा करता है। ऐसा शायद ही कभी हुआ हो कि उसने शाही दस्तूरखान पर भोजन किया हो। तैमूर की मजलिसों में भी वह कभी शरीक नहीं होता। उसे जब शांति मिलती है, तब एकांत में अपनी माता के पास बैठकर दिन-भर का माजरा उससे कहता है और वह उस पर अपनी पसंद की मुहर लगा देती है।

उसने द्वार पर जाकर तैमूर का स्वागत किया। तैमूर ने मसनद पर बैठते हुए कहा- मुझे ताज्जुब होता है कि तुम इस जवानी में जाहिदों की-सी जिंदगी कैसे बसर करते हो हबीब। खुदा ने तुम्हें वह हुस्न दिया है कि हसीन-से-हसीन नाजनीन भी तुम्हाररी माशूक बनकर अपने को खुश्नसीब समझेगी। मालूम नहीं तुम्हें खबर है या नहीं, जब तुम अपने मुश्की घोड़े पर सवार होकर निकलते हो तो समरकंद की खिड़कियों पर हजारों आँखें तुम्हारी एक झलक देखने के लिए मुंतजिर बैठी रहती हैं, पर तुम्हें किसी तरफ आँखें उठाते नहीं देखा। मेरा खुदा गवाह है, मैं कितना चाहता हूँ कि तुम्हारे कदमों के नक्शे पर चलूँ। मैं चाहता हूँ जैसे तुम दुनिया में रहकर भी दुनिया से अलग रहते हो, वैसे मैं भी रहूँ लेकिन मेरे पास न वह दिल है न वह दिमाग। मैं हमेशा अपने-आप पर, सारी दुनिया पर दांत पीसता रहता हूँ। जैसे मुझे हरदम खून की प्या‍स लगी रहती है, तुम बुझने नहीं देते, और यह जानते हुए भी कि तुम जो कुछ करते हो, उससे बेहतर कोई दूसरा नहीं कर सकता, मैं अपने गुस्से को काबू में नहीं कर सकता। तुम जिधर से निकलते हो, मुहब्बसत और रोशनी फैला देते हो। जिसको तुम्हारा दुश्मन होना चाहिए, वह तुम्हारा दोस्त है। मैं जिधर से निकलता हूँ नफरत और शुबहा फैलाता हुआ निकलता हूँ। जिसे मेरा दोस्त होना चाहिए वह भी मेरा दुश्मन है। दुनिया में बस एक ही जगह है, जहाँ मुझे आफियत मिलती है। अगर तुम मुझे समझते हो, यह ताज और तख्त मेरे रास्ते के रोड़े हैं, तो खुदा की कसम, मैं आज इन पर लात मार दूं। मैं आज तुम्हाहरे पास यही दरख्वास्त लेकर आया हूँ कि तुम मुझे वह रास्ता दिखाओ, जिससे मैं सच्ची खुशी पा सकूँ। मैं चाहता हूँ, तुम इसी महल में रहो ताकि मैं तुमसे सच्ची जिंदगी का सबक सीखूं।

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