कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 17 प्रेमचन्द की कहानियाँ 17प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का सत्रहवाँ भाग
उसकी पत्नी स्वेच्छा को इतना महत्व न देना चाहती थी। बोली– मैंने सुना है, तैमूर निगाहों का अच्छा आदमी नहीं है। मैं किसी तरह तुझे न जाने दूंगी। कोई बात हो जाए तो सारी दुनिया हंसे। यों ही हँसनेवाले क्या कम हैं।
इसी तरह स्त्री-पुरुष बड़ी देर तक ऊँच–नीच सुझाते और तरह-तरह की शंकाए करते रहे लेकिन हबीब मौन साधे बैठी हुई थी। यजदानी ने समझा, हबीब भी उनसे सहमत है। इनकार की सूचना देने के लिए ही थी कि हबीब ने पूछा– आप तैमूर से क्या कहेंगे।
यही जो यहाँ तय हुआ।
मैंने तो अभी कुछ नहीं कहा,
मैने तो समझा, तुम भी हमसे सहमत हो।
जी नहीं। आप उनसे जाकर कह दें मैं स्वीकार करती हूँ।
माता ने छाती पर हाथ रखकर कहा- यह क्या गजब करती है बेटी। सोच दुनिया क्या कहेगी?
यजदानी भी सिर थामकर बैठ गए, मानो हृदय में गोली लग गई हो। मुंह से एक शब्द भी न निकला।
हबीब त्योरियों पर बल डालकर बोली- अम्मींजान, मैं आपके हुक्म से जौ-भर भी मुँह नहीं फेरना चाहती। आपको पूरा अख्तियार है, मुझे जाने दें या न दें लेकिन मुल्क की खिदमत का ऐसा मौका शायद मुझे जिंदगी में फिर न मिले। इस मौके को हाथ से खो देने का अफसोस मुझे उम्र-भर रहेगा। मुझे यकीन है कि अमीन तैमूर को मैं अपनी दियानत, बेगरजी और सच्ची वफादारी से इन्सान बना सकती है और शायद उसके हाथों खुदा के बंदों का खून इतनी कसरत से न बहे। वह दिलेर है, मगर बेरहम नहीं। कोई दिलेर आदमी बेरहम नहीं हो सकता। उसने अब तक जो कुछ किया है, मजहब के अंधे जोश में किया है। आज खुदा ने मुझे वह मौका दिया है कि मैं उसे दिखा दूँ कि मजहब खिदमत का नाम है, लूट और कत्ल का नहीं। अपने बारे में मुझे मुतलक अंदेशा नहीं है। मैं अपनी हिफाजत आप कर सकती हूँ। मुझे दावा है कि अपने फर्ज को नेकनीयती से अदा करके मैं दुश्मनों की जुबान भी बन्द कर सकती हूँ, और मान लीजिए मुझे नाकामी भी हो, तो क्या सच्चाई और हक के लिए कुर्बान हो जाना जिन्द्गी की सबसे शानदार फतह नहीं है। अब तक मैंने जिस उसूल पर जिन्दगी बसर की है, उसने मुझे धोखा नहीं दिया और उसी के फैज से आज मुझे यह दर्जा हासिल हुआ है, जो बड़े-बड़ों के लिए जिन्दगी का ख्वाब है। मेरे आजमाए हुए दोस्त मुझे कभी धोखा नहीं दे सकते। तैमूर पर मेरी हकीकत खुल भी जाए, तो क्या खौफ। मेरी तलवार मेरी हिफाजत कर सकती है। शादी पर मेरे ख्याल आपको मालूम हैं। अगर मुझे कोई ऐसा आदमी मिलेगा, जिसे मेरी रूह कबूल करती हो, जिसकी जात अपनी हस्ती खोकर मैं अपनी रूह को ऊँचा उठा सकूं, तो मैं उसके कदमों पर गिरकर अपने को उसकी नजर कर दूंगी।
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