कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 17 प्रेमचन्द की कहानियाँ 17प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का सत्रहवाँ भाग
उसका उदार हदय कहता था, ईसाइयों पर इन बंधनों का कोई अर्थ नहीं। हरेक धर्म का समान रूप से आदर होना चाहिए, लेकिन मुसलमान इन कैदों को हटा देने पर कभी राजी न होंगे। और यह लोग मान भी जाएं तो तैमूर क्यों मानने लगा। उसके धार्मिक विचारों में कुछ उदारता आई है, फिर भी वह इन कैदों को उठाना कभी मंजूर न करेगा, लेकिन क्या वह ईसाइयों को सजा दे कि वे अपनी धार्मिक स्वाधीनता के लिए लड़ रहे हैं। जिसे वह सत्य समझता है, उसकी हत्या कैसे करे। नहीं, उसे सत्य का पालन करना होगा, चाहे इसका नतीजा कुछ भी हो। अमीन समझेंगे मैं जरूरत से ज्यादा बढ़ा जा रहा हूँ। कोई मुजायका नहीं।
दूसरे दिन हबीब ने प्रात काल डंके की चोट ऐलान कराया- जजिया माफ किया गया, शराब और घण्टों पर कोई कैद नहीं है।
मुसलमानों में तहलका पड़ गया। यह कुफ्र है, हरामपरस्ती है। अमीन तैमूर ने जिस इस्लाम को अपने खून से सींचा, उसकी जड़ उन्हीं के वजीर हबीब पाशा के हाथों खुद रही है, पासा पलट गया। शाही फौज मुसलमानों से जा मिली। हबीब ने इस्तखर के किले में पनाह ली। मुसलमानों की ताकत शाही फौज के मिल जाने से बहुत बढ़ गई थी। उन्होंने किला घेर लिया और यह समझकर कि हबीब ने तैमूर से बगावत की है, तैमूर के पास इसकी सूचना देने और परिस्थिति समझाने के लिए कासिद भेजा।
आधी रात गुजर चुकी थी। तैमूर को दो दिनों से इस्तिखर की कोई खबर न मिली थी। तरह-तरह की शंकाएं हो रही थीं। मन में पछतावा हो रहा था कि उसने क्यों हबीब को अकेला जाने दिया। माना कि वह बड़ा नीतिकुशल है, पर बगावत कहीं जोर पकड़ गयी तो मुटटी-भर आदमियों से वह क्या कर सकेगा। और बगावत यकीनन जोर पकड़ेगी। वहाँ के ईसाई बला के सरकश हैं। जब उन्हें मालूम होगा कि तैमूर की तलवार में जंग लग गया और उसे अब महलों की जिन्दगी पसन्द है, तो उनकी हिम्मत दूनी हो जाएगी। हबीब कहीं दुश्मनों से घिर गया, तो बड़ा गजब हो जाएगा। उसने अपने जानू पर हाथ मारा और पहलू बदलकर अपने ऊपर झुंझलाया। वह इतना पस्तहिम्मत क्यों हो गया। क्या उसका तेज और शौर्य उससे विदा हो गया। जिसका नाम सुनकर दुश्मन में कम्पन पड़ जाता था, वह आज अपना मुँह छिपाकर महलों में बैठा हुआ है। दुनिया की आँखों में इसका यही अर्थ हो सकता है कि तैमूर अब मैदान का शेर नहीं, कालीन का शेर हो गया। हबीब फरिश्ता है, जो इन्सान की बुराइयों से वाकिफ नहीं। जो रहम और साफदिली और बेगरजी का देवता है, वह क्या जाने इन्सान कितना शैतान हो सकता है। अमन के दिनों में तो ये बातें कौम और मुल्क को तरक्की के रास्ते पर ले जाती है पर जंग में, जबकि शैतानी जोश का तूफान उठता है इन खुशियों की गुंजाइश नहीं। उस वक्त तो उसी की जीत होती है, जो इन्सानी खून का रंग खेले, खेतों–खलिहानों को जलाए, जंगलों को बसाए और बस्तियों को वीरान करे। अमन का कानून जंग के कानून से जुदा है।
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