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प्रेमचन्द की कहानियाँ 17

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :281
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9778

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का सत्रहवाँ भाग


सहसा चौकीदार ने इस्तखर से एक कासिद के आने की खबर दी। कासिद ने जमीन चूमी और एक किनारे अदब से खड़ा हो गया। तैमूर का रोब ऐसा छा गया कि जो कुछ कहने आया था, वह भूल गया।

तैमूर ने त्योरियां चढ़ाकर पूछा- क्या खबर लाया है। तीन दिन के बाद आया भी तो इतनी रात गए।

कासिद ने फिर जमीन चूमी और बोला- खुदावंद वजीर साहब ने जजिया मुआफ कर दिया।

तैमूर गरज उठा- क्या कहता है, जजिया माफ कर दिया।

हाँ खुदावंद।

किसने।

वजीर साहब ने।

किसके हुक्म से।

अपने हुक्म से हुजूर।

हूँ।

और हुजूर, शराब का भी हुक्म हो गया है।

हूँ।

गिरजों में घंटों को बजाने का भी हुक्म हो गया है।

हूँ।

और खुदावंद ईसाइयों से मिलकर मुसलमानों पर हमला कर दिया।

तो मैं क्या करूं।

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