कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 17 प्रेमचन्द की कहानियाँ 17प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का सत्रहवाँ भाग
चौथा-
जाम चलने को है सब, अहले-नज़र बैठे हैं,
आँख साक़ी न चुराना, हम इधर बैठे हैं।
दूसरा- हम सभी टेंपरेंस के प्रतिज्ञाधारी हैं, पर जब वह हम ही नहीं रहे, तो वह प्रतिज्ञा कहाँ रही? हमारे नाम वही हैं, पर हम वह नहीं हैं। जहाँ लड़कपन की बातें की गयीं, वहीं वह प्रतिज्ञा भी गयी।
मैं- आखिर इससे फायदा क्या है?
दूसरा- यह तो पीने ही से मालूम हो सकता है। एक प्याली पीजिए, फायदा न मालूम हो, तो फिर न पीजिएगा।
तीसरा- मारा, मारा अब मूजी को पिलाकर छोड़ेंगे।
चौथा-
ऐसे में ख़्वार हैं दिन-रात पिया करते हैं,
हम तो सोते में तेरा नाम लिया करते हैं।
पहला- तुम लोगों से न बनेगा मैं पिलाना जानता हूँ।
यह महाशय मोटे-ताजे आदमी थे। मेरा टेटुआ दबाया और प्याली मुँह से लगा दी। मेरी प्रतिज्ञा टूट गयी, दीक्षा मिल गयी, मुराद पूरी हुई, किंतु बनावटी क्रोध से बोला- आप लोग अपने साथ मुझे भी ले डूबे।
दूसरा- मुबारक हो, मुबारक !
तीसरा- मुबारक, मुबारक, सौ बार मुबारक !
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