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प्रेमचन्द की कहानियाँ 17

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :281
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9778

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का सत्रहवाँ भाग


तातारवाले पशु हैं क्यों?

मैं यह नहीं कहता।

तुम कहते हो, खुदा ने तुम्हें ऐश करने के लिए पैदा किया है। मैं कहता हूँ, यह कुफ्र है। खुदा ने इन्सान को बन्दगी के लिए पैदा किया है और इसके खिलाफ जो कोई कुछ करता है, वह काफिर है, जहन्नुमी रसूलेपाक हमारी जिन्दगी को पाक करने के लिए, हमें सच्चा इन्सान बनाने के लिए आये थे, हमें हराम की तालीम देने नहीं। तैमूर दुनिया को इस कुफ्र से पाक कर देने का बीडा उठा चुका है। रसूलेपाक के कदमों की कसम, मैं बेरहम नहीं हूँ जालिम नहीं हूँ, खूंखार नहीं हूँ, लेकिन कुफ्र की सजा मेरे ईमान में मौत के सिवा कुछ नहीं है।

उसने तातारी सिपहसालार की तरफ कातिल नजरों से देखा और तत्क्षण एक देव-सा आदमी तलवार सौतकर यजदानी के सिर पर आ पहुँचा। तातारी सेना भी तलवारें खींच-खींचकर तुर्की सेना पर टूट पडीं और दम-के-दम में कितनी ही लाशें जमीन पर फडकने लगीं।

सहसा वही रूपवान युवक, जो यजदानी के पीछे खडा था, आगे बढकर तैमूर के सामने आया और जैसे मौत को अपनी दोनों बंधी हुई मुटिठयों में मसलता हुआ बोला-ऐ अपने को मुसलमान कहने वाले बादशाह। क्या यही वह इस्लाम की तालीम है कि तू उन बहादुरों का इस बेदर्दी से खून बहाए, जिन्होंने इसके सिवा कोई गुनाह नहीं किया कि अपने खलीफा और मुल्कों की हिमायत की?

चारों तरफ सन्नाटा छा गया। एक युवक, जिसकी अभी मसें भी न भीगी थीं; तैमूर जैसे तेजस्वी् बादशाह का इतने खुले हुए शब्दों में तिरस्कार करे और उसकी जबान तालू से खिंचवा न ली जाए। सभी स्तम्भि्त हो रहे थे और तैमूर सम्मोहित-सा बैठा उस युवक की ओर ताक रहा था।

युवक ने तातारी सिपाहियों की तरफ, जिनके चेहरों पर कुतूहलमय प्रोत्साहन झलक रहा था, देखा और बोला- तू इन मुसलमानों को काफिर कहता है और समझाता है कि तू इन्हें कत्ल करके खुदा और इस्लाम की खिदमत कर रहा है? मैं तुमसे पूछता हूँ, अगर वह लोग जो खुदा के सिवा और किसी के सामने सिजदा नहीं करते, जो रसूलेपाक को अपना रहबर समझते हैं, मुसलमान नहीं है तो कौन मुसलमान हैं? मैं कहता हूँ, हम काफिर सही लेकिन तेरे तो हैं। क्या इस्लाम जंजीरों में बंधे हुए कैदियों के कत्ल की इजाजत देता है खुदा ने अगर तूझे ताकत दी है, अख्तियार दिया है तो क्या इसीलिए कि तू खुदा के बन्दों का खून बहाए क्या गुनाहगारों को कत्ल करके तू उन्हें सीधे रास्ते पर ले जाएगा। तूने कितनी बेहरमी से सत्त‍र हजार बहादुर तुर्कों को धोखा देकर सुरंग से उड़वा दिया और उनके मासूम बच्चों और निरपराध स्त्रियों को अनाथ कर दिया, तुझे कुछ अनुमान है। क्या यही कारनामे हैं, जिन पर तू अपने मुसलमान होने का गर्व करता है। क्या इसी कत्ल्, खून और बहते दरिया में अपने घोडों के सुम नहीं भिगोए हैं, बल्कि इस्लाम को जड़ से खोदकर फेंक दिया है। यह वीर तुर्कों का ही आत्मोत्सर्ग है, जिसने यूरोप में इस्लाम की तौहीद फैलाई। आज सोफिया के गिरजे में तुझे अल्ला‍ह-अकबर की सदा सुनाई दे रही है, सारा यूरोप इस्लाम का स्वागत करने को तैयार है। क्या यह कारनामे इसी लायक हैं कि उनका यह इनाम मिले। इस खयाल को दिल से निकाल दे कि तू खूंरेजी से इस्लाम की खिदमत कर रहा है। एक दिन तुझे भी परवरदिगार के सामने कर्मों का जवाब देना पड़ेगा और तेरा कोई उज्र न सुना जाएगा, क्योंकि अगर तुझमें अब भी नेक और बद की तमीज बाकी है, तो अपने दिल से पूछ। तूने यह जिहाद खुदा की राह में किया या अपनी हविस के लिए और मैं जानता हूँ, तुझे जो जवाब मिलेगा, वह तेरी गर्दन शर्म से झुका देगा।

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