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प्रेमचन्द की कहानियाँ 17

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :281
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9778

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का सत्रहवाँ भाग


खलीफा अभी सिर झुकाए ही था कि यजदानी ने काँपते हुए शब्दों में अर्ज की जहाँपनाह, यह गुलाम का लडका है। इसके दिमाग में कुछ फितूर हैं। हुजूर इसकी गुस्ताखियों को मुआफ करें। मैं उसकी सजा झेलने को तैयार हूँ।

तैमूर उस युवक के चेहरे की तरफ स्थिर नेत्रों से देख रहा था। आज जीवन में पहली बार उसे निर्भीक शब्‍दों को सुनने का अवसर मिला। उसके सामने बडे-बडे सेनापतियों, मंत्रियों और बादशाहों की जबान न खुलती थी। वह जो कुछ कहता था, वही कानून था, किसी को उसमें चूं करने की ताकत न थी। उसके खुशामदों ने उसकी अहम्मान्यता को आसमान पर चढ़ा दिया था। उसे विश्वास हो गया था कि खुदा ने इस्लाम को जगाने और सुधारने के लिए ही उसे दुनिया में भेजा है। उसने पैगम्बरी का दावा तो नहीं किया, पर उसके मन में यह भावना दृढ़ हो गई थी, इसलिए जब आज एक युवक ने प्राणों का मोह छोड़कर उसकी कीर्ति का परदा खोल दिया, तो उसकी चेतना जैसे जाग उठी। उसके मन में क्रोध और हिंसा की जगह श्रद्धा का उदय हुआ। उसकी आँखों का एक इशारा इस युवक की जिन्दंगी का चिराग गुल कर सकता था। उसकी संसार विजयिनी शक्ति के सामने यह दुधमुंहा बालक मानो अपने नन्हें-नन्हें हाथों से समुद्र के प्रवाह को रोकने के लिए खड़ा हो। कितना हास्यास्पद साहस था उसके साथ ही कितना आत्माविश्वास से भरा हुआ। तैमूर को ऐसा जान पडा कि इस निहत्थे बालक के सामने वह कितना निर्बल है। मनुष्य में ऐसे साहस का एक ही स्रोत हो सकता है और वह सत्य पर अटल विश्वास है। उसकी आत्मा दौड़कर उस युवक के दामन में चिपट जाने के लिए अधीर हो गई। वह दार्शनिक न था, जो सत्य में शंका करता है वह सरल सैनिक था, जो असत्य को भी विश्वास के साथ सत्य बना देता है।

यजदानी ने उसी स्वर में कहा- जहांपनाह, इसकी बदजबानी का खयाल न फरमावें।

तैमूर ने तुरंत तख्त से उठकर यजदानी को गले से लगा लिया और बोला- काश, ऐसी गुस्ताखियों और बदजबानियों को सुनने का पहले इत्तफाक होता, तो आज इतने बेगुनाहों का खून मेरी गर्दन पर न होता। मुझे इस जबान में किसी फरिश्ते की रूह का जलवा नजर आता है, जो मुझ जैसे गुमराहों को सच्चा रास्ता दिखाने के लिए भेजी गई है। मेरे दोस्त, तुम खुशनसीब हो कि ऐसे फरिश्ता सिफत बेटे के बाप हो। क्या मैं उसका नाम पूछ सकता हूँ।

यजदानी पहले आतशपरस्त था, पीछे मुसलमान हो गया था, पर अभी तक कभी-कभी उसके मन में शंकाएं उठती रहती थीं कि उसने क्यों इस्लाम कबूल किया। जो कैदी फांसी के तख्ते पर खड़ा सूखा जा रहा था कि एक क्षण में रस्सी उसकी गर्दन में पड़ेगी और वह लटकता रह जाएगा, उसे जैसे किसी फरिश्ते ने गोद में ले लिया। वह गदगद कंठ से बोला- उसे हबीबी कहते हैं।

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