कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 20 प्रेमचन्द की कहानियाँ 20प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का बीसवाँ भाग
मानव-प्रकृति की जटिलता का एक रहस्य यह था कि डंगामल जिस आनन्द से लीला को वंचित रखना चाहते थे, जिसकी उसके लिए कोई जरूरत ही न समझते थे, खुद उसी के लिए सदैव प्रयत्न करते रहते थे। लीला 40 वर्ष की होकर बूढ़ी समझ ली गयी थी, किन्तु वे तैंतालीस के होकर अभी जवान ही थे, जवानी के उन्माद और उल्लास से भरे हुए। लीला से अब उन्हें एक तरह की अरुचि होती थी और वह दुखिया जब अपनी त्रुटियों का अनुभव करके प्रकृति के निर्दय आघातों से बचने के लिए रंग व रोगन की आड़ लेती, तब लालाजी उसके बूढ़े नखरों से और भी घृणा करने लगते। वे कहते वाह री तृष्णा ! सात लड़कों की तो माँ हो गयी, बाल खिचड़ी हो गये, चेहरा धुले हुए फलालैन की तरह सिकुड़ गया, मगर आपको अभी महावर, सेंदुर, मेहंदी और उबटन की हवस बाकी ही है। औरतों का स्वभाव भी कितना विचित्र है ! न-जाने क्यों बनाव-सिंगार पर इतना जान देती हैं? पूछो, अब तुम्हें और क्या चाहिए। क्यों नहीं मन को समझा लेतीं कि जवानी विदा हो गयी और इन उपादानों से वह वापस नहीं बुलायी जा सकती ! लेकिन वे खुद जवानी का स्वप्न देखते रहते थे। उनकी जवानी की तृष्णा अभी शान्त न हुई थी। जाड़ों में रसों और पाकों का सेवन करते रहते थे। हफ्ते में दो बार खिजाब लगाते और एक डाक्टर से मंकीग्लैंड के विषय में पत्र-व्यवहार कर रहे थे।
लीला ने उन्हें असमंजस में देखकर कातर-स्वर में पूछा, 'क़ुछ बतला सकते हो, कै बजे आओगे?'
लालाजी ने शान्त भाव से पूछा, 'तुम्हारा जी आज कैसा है?'
लीला क्या जवाब दे? अगर कहती है कि बहुत खराब है, तो शायद वे महाशय वहीं बैठ जायँ और उसे जली-कटी सुनाकर अपने दिल का बुखार निकालें। अगर कहती है कि अच्छी हूँ, तो शायद निश्चिन्त होकर दो बजे तक कहीं खबर लें। इस दुविधा में डरते-डरते बोली, 'अब तक तो हलकी थी, लेकिन अब कुछ भारी हो रही है। तुम जाओ, दूकान पर लोग तुम्हारी राह देखते होंगे। हाँ, ईश्वर के लिए एक-दो न बजा देना। लड़के सो जाते हैं, मुझे जरा भी अच्छा नहीं लगता, जी घबराता है !'
सेठजी ने अपने स्वर में स्नेह की चाशनी देकर कहा, 'बारह बजे तक आ जरूर जाऊँगा !'
लीला का मुख धूमिल हो गया। उसने कहा, दस बजे तक नहीं आ सकते?'
'साढ़े ग्यारह से पहले किसी तरह नहीं।'
'नहीं, साढ़े दस।'
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