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प्रेमचन्द की कहानियाँ 20

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :154
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9781

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का बीसवाँ भाग

प्रेमचन्द की सभी कहानियाँ इस संकलन के 46 भागों में सम्मिलित की गईं हैं। यह इस श्रंखला का बीसवाँ भाग है।

अनुक्रम

1. धोखा
2. धोखे की टट्टी
3. नबी का नीति-निर्वाह
4. नमक का दरोग़ा
5. नया विवाह
6. नरक का मार्ग
7. नशा

1. धोखा

सतीकुंड में खिले हुए कमल वसंत के धीमे-धीमे झोकों से लहरा रहे थे और प्रातःकाल की मंद-मंद सुनहरी किरणें उनसे मिल-मिलकर मुस्कराती थीं। राजकुमारी 'प्रभा' कुंड के किनारे हरी-हरी घास पर खड़ी सुंदर पक्षियों का कलरव सुन रही थी। उसका कनक-बरन तन, इन्हीं फूलों की भाँति दमक रहा था, मानो प्रभात की साक्षात् सौम्य मूर्ति थी, जो भगवान अंशुमाली के किरण-करों द्वारा निर्मित हुई थी।

प्रभा ने मौलसरी के वृक्ष पर बैठी हुई एक श्यामा की ओर देखकर कहा- ''मेरा जी चाहता है कि, मैं भी ऐसी ही चिड़िया होती।''

उसकी सहेली उमा ने मुस्कराकर पूछा- ''यह क्यों!''

प्रभा ने कुंड की ओर ताकते हुए उत्तर दिया- ''वृक्ष की हरी-भरी डालियों पर बैठी हुई चहचहाती, मेरे कलरव से सारा बाग गूँज उठता।’’

उमा ने छेड़कर कहा- ''नौगढ़ की रानी ऐसे कितनी ही पक्षियों का गाना जब चाहे सुन सकती हैं।''

प्रभा ने संकुचित होकर कहा- ''मुझे नौगढ़ की रानी बनने की अभिलाषा नहीं है। मेरे लिए किसी नदी का सुनसान किनारा चाहिए। एक वीणा और ऐसे ही सुंदर-सुहावने पक्षियों की संगति। मधुरध्वनि में मेरे लिए सारे संसार का ऐश्वर्य भरा हुआ है।’’

प्रभा का संगीत पर अपरिमित प्रेम था। वह बहुधा ऐसे ही सुख-स्वप्न देखा करती थी। उमा उत्तर देना ही चाहती थी कि, इतने में बाहर से किसी के गाने की आवाज़ आई-

कर गए थोड़े दिन की प्रीति

प्रभा ने एकाग्रमन होकर सुना और धैर्य छोड़कर- ''बहिन इस वाणी में जादू है। मुझसे अब बिना सुने नहीं रहा जाता, इसे भीतर बुला लाओ।''

उमा पर भी गीत का जादू असर कर रहा था। वह बोली- ''निःसंदेह ऐसा राग मैंने आज तक नहीं सुना, खिड़की खोलकर बुलाती हूँ।’’

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