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प्रेमचन्द की कहानियाँ 20

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :154
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9781

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का बीसवाँ भाग


थोड़ी देर में तगिया भीतर आया। सुंदर, सजीले बदन का नौजवान था। नंगे पैर, नंगे सिर, कँधे पर एक मृगचर्म, शरीर पर एक गेरुवा वस्त्र, हाथों में एक सितार। मुखारविंद से तेज छिटक रहा था। उसने दबी हुई दृष्टि से दोनों कोमलांगना रमणियों को देखा और वह सिर झुकाकर बैठ गया।

प्रभा ने झिझकती हुई आँखों से देखा और दृष्टि नीची कर ली। उमा ने कहा- ''योगीजी, हमारे बड़े भाग्य थे कि आपके दर्शन हुए, हमको भी कोई पद सुनाकर कृतार्थ कीजिए।’’

योगी ने सिर झुकाकर उत्तर दिया- ''हम योगी लोग नारायण का भजन करते हैं। ऐसे-वैसे दरबारों में हम भला क्या गा सकते हैं, पर आपकी इच्छा है तो सुनिए।''

कर गए थोड़े दिन की प्रीति?
कहाँ वह प्रीति कहाँ यह बिछुरन
कहँ मधुवन की रीति
कर गए थोड़े दिन की प्रीति?

योगी का रसीला, करुण स्वर, सितार का सुमधुर निनाद, उस पर गीत का माधुर्य, प्रभा को बेसुध किए देता था। इसका रसज्ञ स्वभाव और उसका मधुर रसीला गाना, अपूर्व संयोग था। जिस भाँति सितार की ध्वनि गगनमंडल में प्रतिध्वनित हो रही थी, उसी भाँति प्रभा के हृदय में लहरों की हिलोरें उठ रही थीं। वे भावनाएँ जो अब तक शांत थीं, जाग पड़ी। हृदय सुख-स्वप्न देखने लगा। सतीकुंड के कमल तिलस्म की परियाँ बन-बनकर मँडराते हुए भौंरों से, कर जोड़, सजल-नयन कहते थे-

कर गए थोड़े दिन की प्रीति
सुर्ख और हरी पत्तियों से लदी हुई डालियाँ,
सिर झुकाए चहकते हुए पक्षियों से रो-रो कर कहती थीं
कर गए थोड़े दिन की प्रीति?

और राजकुमारी प्रभा का हृदय भी सितार की मस्तानी तान के साथ गाता था-

कर गए थोड़े दिन की प्रीति...

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