कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 21 प्रेमचन्द की कहानियाँ 21प्रेमचंद
|
2 पाठकों को प्रिय 139 पाठक हैं |
प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का इक्कीसवाँ भाग
श्यामा- तो तुमने मुझे दिखाया क्यों नहीं?
केशव- और गिर पड़ती तो चार सर न हो जाते।
श्यामा- हो जाते, हो जाते। देख लेना मैं कह दूँगी।
इतने में कोठरी का दरवाजा खुला और मां ने धूप से आंखों को बचाते हुए कहा- तुम दोनों बाहर कब निकल आए? मैंने कहा था न कि दोपहर को न निकलना? किसने किवाड़ खोला?
किवाड़ केशव ने खोला था, लेकिन श्यामा ने मां से यह बात नहीं कही। उसे डर लगा कि भैया पिट जायेंगे। केशव दिल में कांप रहा था कि कहीं श्यामा कह न दे। अण्डे न दिखाए थे, इससे अब उसको श्यामा पर विश्वास न था श्यामा सिर्फ मुहब्बत के मारे चुप थी या इस क़सूर में हिस्सेदार होने की वजह से, इसका फैसला नहीं किया जा सकता। शायद दोनों ही बातें थीं।
माँ ने दोनों को डॉँट-डपटकर फिर कमरे में बंद कर दिया और आप धीरे-धीरे उन्हें पंखा झलने लगी। अभी सिर्फ दो बजे थे बाहर तेज लू चल रही थी। अब दोनों बच्चों को नींद आ गयी थी।
चार बजे यकायक श्यामा की नींद खुली। किवाड़ खुले हुए थे। वह दौड़ी हुई कार्निस के पास आयी और ऊपर की तरफ ताकने लगी । टोकरी का पता न था। संयोग से उसकी नजर नीचे गयी और वह उलटे पांव दौड़ती हुई कमरे में जाकर जोर से बोली- भइया, अण्डे तो नीचे पड़े हैं, बच्चे उड़ गए!
केशव घबराकर उठा और दौड़ा हुआ बाहर आया तो क्या देखता है कि तीनों अण्डे नीचे टूटे पड़े हैं और उनसे को चूने की-सी चीज बाहर निकल आयी है। पानी की प्याली भी एक तरफ टूटी पड़ी है।
उसके चेहरे का रंग उड़ गया। सहमी हुई आंखों से जमीन की तरफ देखने लगा।
श्यामा ने पूछा- बच्चे कहां उड़ गए भइया?
केशव ने करुण स्वर में कहा- अण्डे तो फूट गए ।
‘और बच्चे कहां गये?’
|