कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 21 प्रेमचन्द की कहानियाँ 21प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का इक्कीसवाँ भाग
केशव- तेरे सर में। देखती नहीं है अण्डों से उजला-उजला पानी निकल आया है। वही दो-चार दिन में बच्चे बन जाते।
मां ने सोटी हाथ में लिए हुए पूछा- तुम दोनो वहां धूप में क्या कर रहें हो?
श्यामा ने कहा- अम्मां जी, चिड़िया के अण्डे टूटे पड़े हैं।
मां ने आकर टूटे हुए अण्डों को देखा और गुस्से से बोलीं- तुम लोगों ने अण्डों को छुआ होगा?
अब तो श्यामा को भइया पर ज़रा भी तरस न आया। उसी ने शायद अण्डों को इस तरह रख दिया कि वह नीचे गिर पड़े। इसकी उसे सजा मिलनी चाहिए बोली- इन्होंने अण्डों को छेड़ा था अम्मां जी।
मां ने केशव से पूछा- क्यों रे?
केशव भीगी बिल्ली बना खड़ा रहा।
मां- तू वहां पहुँचा कैसे?
श्यामा- चौके पर स्टूल रखकर चढ़े अम्मांजी।
केशव- तू स्टूल थामे नहीं खड़ी थी?
श्यामा- तुम्हीं ने तो कहा था !
मां- तू इतना बड़ा हुआ, तुझे अभी इतना भी नहीं मालूम कि छूने से चिड़ियों के अण्डे गन्दे हो जाते हैं। चिड़िया फिर इन्हें नहीं सेती।
श्यामा ने डरते-डरते पूछा- तो क्या चिड़िया ने अण्डे गिरा दिए हैं, अम्मां जी?
मां- और क्या करती। केशव के सिर इसका पाप पड़ेगा। हाय, हाय, जानें ले लीं दुष्ट नें!
केशव रोनी सूरत बनाकर बोला- मैंने तो सिर्फ अण्डों को गद्दी पर रख दिया था, अम्मा जी !
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