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प्रेमचन्द की कहानियाँ 21

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :157
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9782

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का इक्कीसवाँ भाग


अक्षय कुमार सगझ गये कि अब बहस-मुबाहिसे की जरुरत आ गई, सम्हाल बैठे और बोले- मेरी जान, बी०ए० के इम्तहान में पास होना कोई गैर-मामूली बात नहीं है, हजारों नौजवान हर साल पास होते रहते हैं। अगर मेरा भाई होता तो मैं सिर्फ उसकी पीठ ठोंककर कहता कि शाबाश, खूब मेहनत की। मुझे ड्रामा खेलने का खयाल भी न पैदा होता। डाक्टर साहब तो समझदार आदमी हैं, उन्हें क्या सूझी !

हेमवती- मुझे तो जाना ही पड़ेगा।

अक्षयकुमार- क्यों, क्या वादा कर लिया है?

हेमवती- डाक्टर साहब की बीवी खुद आई थी।

अक्षयकुमार- तो मेरी जान, तुम भी कभी उनके घर चली जाना, परसों जाने की क्या जरूरत है?

हेमवती- अब बता ही दूँ, मुझे नायिका का पार्ट दिया गया है और मैंने उसे मंजूर कर लिया है।

यह कहकर हेमवती ने गर्व से अपने पति की तरफ देखा, मगर अक्षयकुमार को इस खबर से बहुत खुशी नहीं हुई। इससे पहले दो बार हेमवती शकुन्तला बन चुकी थी। इन दोनों मौकों पर बाबू साहब को काफी खर्च करना पड़ा था। उन्डें डर हुआ कि अब की हफ्ते में फिर घोष कम्पनी दो सौ का बिल पेश करेगी। और इस बात की सख्त जरूरत थी कि अभी से रोक-थाम की जाय। उन्होंने बहुत मुलायमियत से हेमवती का हाथ पकड़ लिया और बहुत मीठे और मुहब्बत में लिपटे हुए लहजे में बोले- प्यारी, यह बला फिर तुमने अपने सर ले ली। अपनी तकलीफ और परेशानी का बिलकुल खयाल नहीं किया। यह भी नहीं सोचा कि तुम्हारी परेशानी तुम्हारे इस प्रेमी को कितना परेशान करती है। मेरी जान, यह जलसे नैतिक दृष्टि से बहुत आपत्तिजनक होते हैं। इन्हीं मौकों पर दिलों में ईर्ष्या के बीज बोये जाते हैं। यहीं, पीठ पीछे बुराई करने की आदत पड़ती है और यहीं तानेबाजी और नोकझोंक की मश्क होती है। फलाँ लेडी हसीन है, इसलिए उसकी दूसरी बहनों का फर्ज है कि उससे जलें। मेरी जान, ईश्वर न करे कि कोई डाही बने मगर डाह करने के योग्य बनना तो अपने अख्तियार की बात नहीं। मुझे भय है कि तुम्हारा दाहक सौन्दर्य कितने ही दिलों को जलाकर राख कर देगा। प्यारी हेमू, मुझे दुख है कि तुमने मुझसे पूछे बगैर यह निमंत्रण स्वीकार कर लिया। मुझे विश्वास है, अगर तुम्हें मालूम होता कि मैं इसे पसन्द न करुँगा तो तुम हरगिज स्वीकार न करतीं।

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