कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 21 प्रेमचन्द की कहानियाँ 21प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का इक्कीसवाँ भाग
नौ बजते-बजते पंडित मोटेराम बाल-गोपाल सहित रानी साहब के द्वार पर जा पहुँचे। रानी बड़ी विशालकाय एवं तेजस्विनी महिला थीं। इस समय वे कारचोबीदार तकिया लगाये तख्त पर बैठी हुई थीं। दो आदमी हाथ बाँधे पीछे खड़े थे। बिजली का पंखा चल रहा था। पंडित जी को देखते ही रानी ने तख्त से उठ कर चरण-स्पर्श किया और इस बालक-मंडल को देखकर मुस्कराती हुई बोलीं, 'इन बच्चों को आप कहाँ से पकड़ लाये?'
मोटे- 'करता क्या? सारा नगर छान मारा; किसी पंडित ने आना स्वीकार न किया। कोई किसी के यहाँ निमंत्रित है, कोई किसी के यहाँ। तब तो मैं बहुत चकराया। अंत में मैंने उनसे कहा, 'अच्छा, आप नहीं चलते तो हरि इच्छा; लेकिन ऐसा कीजिए कि मुझे लज्जित न होना पड़े। तब जबरदस्ती प्रत्येक के घर से जो बालक मिला, उसे पकड़ लाना पड़ा। क्यों फेकूराम, तुम्हारे पिता जी का क्या नाम है? '
फेकूराम ने गर्व से कहा , 'पंडित सेतूराम पाठक।'
रानी- 'बालक तो बड़ा होनहार है।'
और बालकों को भी उत्कंठा हो रही थी कि हमारी भी परीक्षा ली जाए; लेकिन जब पंडित जी ने उनसे कोई प्रश्न न किया और उधर रानी ने फेकूराम की प्रशंसा कर दी, तब तो वे अधीर हो उठे। भवानी बोला, 'मेरे पिता का नाम है पंडित गंगू पाँडे।'
छेदी बोला, 'मेरे पिता का नाम है दमड़ी तिवारी !'
बेनीराम ने कहा, 'मेरे पिता का नाम है पंडित मँगरू ओझा।'
अलगूराम समझदार था। चुपचाप खड़ा रहा। रानी ने उससे पूछा, 'तुम्हारे पिता का क्या नाम है, जी? '
अलगूराम को इस वक्त पिता का निर्दिष्ट नाम याद न आया। न यही सूझा कि कोई और नाम ले ले। हतबुद्धि-सा खड़ा रहा। पंडित मोटेराम ने जब उसकी ओर दाँत पीस कर देखा, तब रहा-सहा हवास भी गायब हो गया।
फेकूराम ने कहा , 'हम बता दें। भैया भूल गये।'
रानी ने आश्चर्य से पूछा, क्या अपने पिता का नाम भूल गया? यह तो विचित्र बात देखी। मोटेराम ने अलगू के पास जाकर कहा, 'क से है।'
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