कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 23 प्रेमचन्द की कहानियाँ 23प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का तेइसवाँ भाग
व्यास- प्राण तक चूर-चूर हो जाय।
वाजिद- खुदाबंद, एक जरा-सी ऊंचाई पर से आदमी देखता है, तो कांपने लगता है, न कि पहाड़ की चढ़ाई।
कुंअर- वहां सड़कों पर इधर-उधर ईंट या पत्थर की मुंडेर नहीं बनी हुई हैं?
वाजिद- खुदाबंद, मीलों के रास्ते में मुंडेर कैसी!
कुंअर- आदमी का काम तो नहीं है।
लाला- सुना वहां घेंघा निकल आता है।
कुंअर- अरे भई यह बुरा रोग है। तब मैं वहां जाने का नाम भी न लूंगा।
खां- आप लाल साहब से पूछें कि साहब लोग जो वहां रहते हैं, उनको घेंघा क्यों नहीं हो जाता?
लाला- वह लोग ब्रांडी पीते हैं। हम और आप उनकी बराबरी कर सकते हैं भला। फिर उनका अकबाल!
वाजिद- मुझे तो यकीन नहीं आता कि खां साहब कभी नैनीताल गये हों। इस वक्त डींग मार रहे हैं। क्यों साहब, आप कितने दिन वहां रहे?
खां- कोई चार बरस तक रहा था।
वाजिद- आप वहां किस मुहल्ले में रहते थे?
खां- (गड़बड़ा कर) जी - मैं।
वाजिद- आखिर आप चार बरस कहां रहे?
खां- देखिए याद आ जाय तो कहूं।
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