कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 23 प्रेमचन्द की कहानियाँ 23प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का तेइसवाँ भाग
वाजिद- जाइए भी। नैनीताल की सूरत तक तो देखी नहीं, गप हांक दी कि वहां चार बरस तक रहे!
खां- अच्छा साहब, आप ही का कहना सही। मैं कभी नैनीताल नहीं गया। बस, अब तो आप खुश हुए।
कुंअर- आखिर आप क्यों नहीं बताते कि नैनीताल में आप कहां ठहरे थे।
वाजिद- कभ्री गए हों, तब न बताएं।
खां- कह तो दिया कि मैं नहीं गया, चलिए छुट्टी हुई। अब आप फरमाइए कुंअर साहब, आपको चलना है या नहीं? ये लोग जो कहते हैं सब ठीक है। वहां घेंघा निकल आता है, वहां का पानी इतना खराब है कि खाना बिल्कुल नहीं हजम होता, वहां हर रोज दस-पांच आदमी खड्ड में गिरा करते है। अब आप क्या फैसला करते हैं? वहां जो मजे हैं वह यहां ख्वाब में भी नहीं मिल सकते। जिन हुक्काम के दरवाजे पर घंटों खड़े रहने पर भी मुलाकात नहीं होती, उनसे वहां चौबीसों घंटों का साथ रहेगा। मिसों के साथ झील में सैर करने का मजा अगर मिल सकता है तो वहीं। अजी सैकड़ों अंग्रेजों से दोस्ती हो जाएगी। तीन महीने वहां रहकर आप इतना नाम हासिल कर सकते हैं जितना यहां जिन्दगी-भर भी न होगा। वस, और क्या कहूं।
कुंअर- वहां बड़े-बड़े अंग्रेजों से मुलाकात हो जाएगी?
खां- जनाब, दावतों के मारे आपको दम मारने की मोहलत न मिलेगी।
कुंअर- जी तो चाहता है कि एक बार देख ही आएं।
खां- तो बस तैयारी कीजिए।
सभाजन ने जब देखा कि कुंअर साहब नैनीताल जाने के लिए तैयार हो गए तो सब के सब हां में हां मिलाने लगे।
व्यास- पर्वत-कंदराओं में कभी-कभी योगियों के दर्शन हो जाते है।
लाला- हां साहब, सुना है दो-दो सौ साल के योगी वहां मिलते हैं। जिसकी ओर एक बार आंख उठाकर देख लिया, उसे चारों पदार्थ मिल गये।
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