कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 23 प्रेमचन्द की कहानियाँ 23प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का तेइसवाँ भाग
वाजिद- मगर हुजूर चलें, तो इस ठाठ से चलें कि वहां के लोग भी कहें कि लखनऊ के कोई रईस आये हैं।
लाला- लक्ष्मी हथिनी को जरूर ले चलिए। वहां कभी किसी ने हाथी की सूरत काहे को देखी होगी। जब सरकार सवार होकर निकलेंगे और गंगा-जमुनी हौदा चमकेगा तो लोग दंग हो जाएंगे।
व्यास- एक डंका भी हो, तो क्या पूछना।
कुंअर- नहीं साहब, मेरी सलाह डंके की नहीं है। देश देखकर भेष बनाना चाहिए।
लाला- हां, डंके की सलाह तो मेरी भी नहीं है। पर हाथी के गले में घंटा जरूर हो।
खां- जब तक वहां किसी दोस्त को तार दे दीजिए कि एक पूरा बंगला ठीक कर रक्खे। छोटे साहब को भी उसी में ठहरा लेंगे।
कुंअर- वह हमारे साथ क्यों ठहरने लगे, अफसर हैं।
खां- उनको लाने का जिम्मा हमारा। खींच-खींचकर किसी न किसी तरह ले ही आऊंगा।
कुंअर- अगर उनके साथ ठहरने का मौका मिले, तब तो मैं समझूं नैनीताल का जाना पारस हो गया।
एक हफ्ता गुजर गया। सफर की तैयारियां हो गई। प्रात:काल काटन साहब का खत आया कि आप हमारे यहां आएंगे या मुझसे स्टेशन पर मिलेंगे। कुंअर साहब ने जवाब लिखवाया कि आप इधर ही आ जाइएगा। स्टेशन का रास्ता इसी तरफ से है। मैं तैयार रहूंगा। यह खत लिखवा कर कुंअर साहब अन्दर गए तो देखा कि उनकी बड़ी साली रामेश्वरी देवी बैठी हुई है। उन्हें देखकर बोली- क्या आप सचमुच नैनीताल जा रहे है?
कुंअर- जी हां, आज रात की तैयारी है।
रामेश्वरी- अरे! आज ही रात को! यह नहीं हो सकता। कल बच्चा का मुंडन है। मैं एक न मानूंगी। आप ही न होगे तो लोग आकर क्या करेंगे।
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