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प्रेमचन्द की कहानियाँ 23

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :137
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9784

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का तेइसवाँ भाग


कुंअर- तो आपने पहले ही क्यों न कहला दिया, पहले से मालूम होता तो मैं कल जाने का इरादा ही क्यों करता।

रामेश्वरी- तो इसमें लाचारी की कौन-सी बात हैं, कल न सही दो-चार दिन बाद सही।

कुंअर साहब की पत्नी सुशीला देवी बोली- हां, और क्या, दो-चार दिन बाद ही जाना, क्या साइत टली है?

कुंअर- आह! छोटे साहब से वादा कर चुका हूं, वह रात ही को मुझे लेने आएंगे। आखिर वह अपने दिल में क्या कहेंगे?

रामेश्वरी- ऐसे-ऐसे वादे हुआ ही करते हैं। छोटे साहब के हाथ कुछ बिक तो गये नहीं हो।

कुंअर- मैं क्या कहूं कि कितना मजबूर हूं! बहुत लज्जित होना पड़ेगा।

रामेश्वरी- तो गोया जो कुछ है वह छोटे साहब ही हैं, मैं कुछ नहीं!

कुंअर- आखिर साहब से क्या कहूं, कौन बहाना करूं?

रामेश्वरी- कह दो कि हमारे भतीजे का मुंडन हैं, हम एक सप्ताह तक नहीं चल सकते। बस, छुट्टी हुई।

कुंअर- (हंसकर) कितना आसान कर दिया है आपने इस समस्या को, ऐसा हो सकता है कहीं। कहीं मुंह दिखाने लायक न रहूंगा।

सुशीला- क्यों, हो सकने को क्या हुआ? तुम उसके गुलाम तो नहीं हो?

कुंअर- तुम लोग बाहर तो निकलती-पैठती नहीं हो, तुम्हें क्या मालूम कि अंग्रेजों के विचार कैसे होते हैं।

रामेश्वरी- अरे भगवान्! आखिर उसके कोई लड़का-बाला है, या निगोड़ नाठा है। त्योहार और व्योहार हिन्दू-मुसलमान सबके यहां होते हैं।

कुंअर- भई हमसे कुछ करते-धरते नहीं बनता।

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