कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 23 प्रेमचन्द की कहानियाँ 23प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का तेइसवाँ भाग
कुंअर- तो आपने पहले ही क्यों न कहला दिया, पहले से मालूम होता तो मैं कल जाने का इरादा ही क्यों करता।
रामेश्वरी- तो इसमें लाचारी की कौन-सी बात हैं, कल न सही दो-चार दिन बाद सही।
कुंअर साहब की पत्नी सुशीला देवी बोली- हां, और क्या, दो-चार दिन बाद ही जाना, क्या साइत टली है?
कुंअर- आह! छोटे साहब से वादा कर चुका हूं, वह रात ही को मुझे लेने आएंगे। आखिर वह अपने दिल में क्या कहेंगे?
रामेश्वरी- ऐसे-ऐसे वादे हुआ ही करते हैं। छोटे साहब के हाथ कुछ बिक तो गये नहीं हो।
कुंअर- मैं क्या कहूं कि कितना मजबूर हूं! बहुत लज्जित होना पड़ेगा।
रामेश्वरी- तो गोया जो कुछ है वह छोटे साहब ही हैं, मैं कुछ नहीं!
कुंअर- आखिर साहब से क्या कहूं, कौन बहाना करूं?
रामेश्वरी- कह दो कि हमारे भतीजे का मुंडन हैं, हम एक सप्ताह तक नहीं चल सकते। बस, छुट्टी हुई।
कुंअर- (हंसकर) कितना आसान कर दिया है आपने इस समस्या को, ऐसा हो सकता है कहीं। कहीं मुंह दिखाने लायक न रहूंगा।
सुशीला- क्यों, हो सकने को क्या हुआ? तुम उसके गुलाम तो नहीं हो?
कुंअर- तुम लोग बाहर तो निकलती-पैठती नहीं हो, तुम्हें क्या मालूम कि अंग्रेजों के विचार कैसे होते हैं।
रामेश्वरी- अरे भगवान्! आखिर उसके कोई लड़का-बाला है, या निगोड़ नाठा है। त्योहार और व्योहार हिन्दू-मुसलमान सबके यहां होते हैं।
कुंअर- भई हमसे कुछ करते-धरते नहीं बनता।
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