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प्रेमचन्द की कहानियाँ 23

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :137
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9784

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का तेइसवाँ भाग


व्यास- धर्मावतार, कुछ कहते नहीं बनता। बड़ी हीन दशा है।

कुंअर- नैनीताल जाने को तैयार था। अब बड़ी साली कहती है कि मेरे बच्चे का मुंडन है, मैं न जाने दूंगी। चले जाओगे तो मुझे रंज होगा। बतलाइए, अब क्या करूं। ऐसी मूर्खता और कहां देखने में आएगी। पूछो मुंडन नाई करेगा, नाच-तमाशा देखने वालों की शहर में कमी नहीं, एक मैं न हूंगा न सही, मगर उनको कौन समझाये।

व्यास- दीनबन्धु, नारी-हठ तो लोक प्रसिद्ध ही है।

कुंअर- अब यह सोचिए कि छोटे साहब से क्या बहाना किया जायगा।

वाजिद- बड़ा नाजुक मुआमला आ पड़ा हुजूर।

लाला- हाकिम का नाराज हो जाना बुरा है।

वाजिद- हाकिम मिट्टी का भी हो, फिर भी हाकिम ही है।

कुंअर- मैं तो बड़ी मुसीबत में फंस गया।

लाला- हुजूर, अब बाहर न बैठें। मेरी तो यही सलाह है। जो कुछ सिर पर पड़ेगी, हम ओढ़ लेंगे।

वाजिद- अजी, पसीने की जगह खून गिरा देंगे। नमक खाया है कि दिल्लगी है।

लाला- हां, मुझे भी यही मुनासिब मालूम होता है। आप लोग कह दीजिए, बीमार हो गए है।

अभी यही बातें हो रही थी कि खिदमतगार ने आकर हांफते हुए कहा- सरकार, कोऊ आया है, तौन सरकार का बुलावत है।

कुंअर- कौन है पूछा नहीं?

खिद.- कोऊ रंगरेज है सरकार, लालो-लाल मुंह है, घोड़ा पर सवार है।

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