कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 23 प्रेमचन्द की कहानियाँ 23प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का तेइसवाँ भाग
कुंअर- कहीं छोटे साहब तो नहीं हैं, भई मैं तो भीतर जाता हूं। अब आबरू तुम्हारे हाथ है।
कुंअर साहब ने तो भीतर घुसकर दरवाजा बन्द कर लिया। वाजिदअली ने खिड़की से झांकर देखा, तो छोटे साहब खड़े थे। हाथ-पांव फूल गये। अब साहब के सामने कौन जाय? किसी की हिम्मत नहीं पड़ती। एक दूसरे को ठेल रहा है।
लाला- बढ़ जाओ वाजिदअली। देखो कया कहते हैं?
वाजिद- आप ही क्यों नहीं चले जाते?
लाला- आदमी ही तो वह भी हैं, कुछ खा तो न जाएगा।
वाजिद- तो चले क्यों नहीं जाते।
काटन साहब दो-तीन मिनट खड़े रहे। अब यहाँ से कोई न निकला तो बिगड़कर बोले- यहां कौन आदमी है? कुंअर साहब से बोलो, काटन साहब खड़ा है। मियां वाजिद बौखलाये हुए आगे बढ़े और हाथ बांधकर बोले- खुदावंद, कुंअर साहब ने आज बहुत देर से खाना खाया, तो तबियत कुछ भारी हो गई है। इस वक्त आराम में हैं, बाहर नहीं आ सकते।
काटन- ओह! तुम यह क्या बोलता है? वह तो हमारे साथ नैनीताल जाने वाला था। उसने हमको खत लिखा था।
वाजिद- हां, हुजूर, जाने वाले तो थे, पर बीमार हो गये।
काटन- बहुत रंज हुआ।
वाजिद- हुजूर, इत्तफाक है।
काटन- हमको बहुत अफसोस है। कुंअर साहब से जाकर बोलो, हम उनको देखना मांगता है।
वाजिद- हुजूर, बाहर नहीं आ सकते।
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