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प्रेमचन्द की कहानियाँ 23

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :137
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9784

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का तेइसवाँ भाग


लेकिन उसी समूह में एक ऐसा भी मनुष्य था, जिसके हृदय में दया थी और साहस था। जबकि हाकी खेलते हुए उसके पैरों में चोट लग गई थी। लँगड़ाता हुआ धीरे-धीरे चला आता था। अकस्मात उसकी निगाह गाड़ी पर पड़ी। ठिठक गया। उसे किसान की सूरत देखते ही सब बातें ज्ञात हो गईं। डण्डा एक किनारे रख दिया। कोट उतार डाला और किसान के पास जाकर बोला– मैं तुम्हारी गाड़ी निकाल दूँ?

किसान ने देखा कि एक गठे हुए बदन का लम्बा आदमी सामने खड़ा हो। झुककर बोला– हुजूर! मैं आपसे कैसे कहूँ।

युवक ने कहा– मालूम होता है, तुम यहाँ बड़ी देर से फँसे हुए हो। अच्छा, तुम गाड़ी पर जाकर बैलों को साधो, मैं पहियों को ढकेलता हूँ। अभी गाड़ी ऊपर चढ़ी जाती है।

किसान गाड़ी पर जा बैठा। युवक ने पहियों को जोर लगाकर उकसाया। कीचड़ बहुत ज्यादा था। वह घुटने तक जमीन में गड़ गया लेकिन हिम्मत न हारी। उसने फिर जोर किया, उधर किसान ने बैलों को ललकारा। बैलों को सहारा मिला, हिम्मत बँध गई। उन्होंने कन्धे झुकाकर एक बार जोर किया, तो गाड़ी नाले के ऊपर थी।

किसान युवक के सामने हाथ जोड़कर खड़ा हो गया। बोला– महाराज! आपने मुझे उबार लिया, नहीं तो सारी रात यहीं बैठना पड़ता।

युवक ने हँसकर कहा– अब मुझे कुछ इनाम देते हो?

किसान ने गम्भीर भाव से कहा– नारायण चाहेंगे तो दीवानी आपको ही मिलेगी।

युवक ने किसान की तरफ गौर से देखा। उसके मन में एक सन्देह हुआ, क्या यह सुजानसिंह तो नहीं हैं? आवाज़ मिलती है, चेहरा-मोहरा भी वही। किसान ने भी उसकी ओर तीव्र दृष्टि से देखा। शायद उसके दिल के सन्देह को भाँप गया, मुस्कराकर बोला– गहरे पानी में पैठने से ही मोती मिलता है।

निदान महीना पूरा हुआ। चुनाव का दिन आ पहुँचा। उम्मीदवार लोग प्रातःकाल ही से अपनी किस्मतों का फैसला सुनने के लिए उत्सुक थे। दिन काटना पहाड़ हो गया। प्रत्येक चेहरे पर आशा और निराशा के रंग आते थे। नहीं मालूम, आज किसके नसीब जागेंगे? न जाने किस पर लक्ष्मी की कृपादृष्टि होगी।

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