लोगों की राय

कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 23

प्रेमचन्द की कहानियाँ 23

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :137
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9784

Like this Hindi book 3 पाठकों को प्रिय

296 पाठक हैं

प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का तेइसवाँ भाग


संध्या समय राजा साहब का दरबार सजाया गया। शहर के रईस और धनाढ्य लोग, राज्य के कर्मचारी और दरबारी तथा दीवानी के उम्मीदवारों का समूह, सब रंग-बिरंगी सजधज बनाए दरबार में आ विराजे। उम्मीदवारों के कलेजे धड़क रहे थे।

तब सरदार सुजानसिंह ने खड़े होकर कहा– मेरे दीवानी के उम्मीदवार महाशयों! मैंने आप लोगों को जो कष्ट दिया है, उसके लिए मुझे क्षमा कीजिएगा। मुझे इस पद के लिए ऐसे पुरुष की आवश्यकता थी, जिसके हृदय में दया हो और साथ-साथ आत्मबल। हृदय वह जो उदार हो, आत्मबल वह जो आपत्ति का वीरता के साथ सामना करे और इस रियासत के सौभाग्य से हमको ऐसा पुरुष मिल गया। ऐसे गुणवाले संसार में कम हैं, जो हैं वे कीर्ति और मान के शिखर पर बैठे हुए हैं, उन तक हमारी पहुँच नहीं। मैं रियासत को पण्डित जानकीनाथ-सा दीवान पाने पर बधाई देता हूँ।

रियासत के कर्मचारियों और रईसों ने जानकीनाथ की तरफ देखा। उम्मीदवार दल की आँखें उधर उठीं, मगर उन आँखों में सत्कार न था, उन आँखों में ईर्ष्या थी।

सरदार साहब ने फिर फरमाया– आप लोगों को यह स्वीकार करने में कोई आपत्ति न होगी कि जो पुरुष स्वयं जख्मी होकर भी एक गरीब किसान की भरी हुई गाड़ी को दलदल से निकालकर नाले के ऊपर चढ़ा दे, उसके हृदय में साहस, आत्मबल और उदारता का वास है। ऐसा आदमी गरीबों को कभी न सतावेगा। उसका संकल्प दृढ़ है, जो उसके चित्त को स्थिर रखेगा। वह चाहे धोखा खा जावे, परन्तु दया और धर्म से कभी न हटेगा।

0 0 0

 

3. पर्वत-यात्रा

प्रात:काल गुलाबाजखां ने नमाज पढ़ी, कपड़े पहने और महरी से किराये की गाड़ी लाने को कहा।

शीरी बेगम ने पूछा- आज सबेरे-सबेरे कहां जाने का इरादा है?

गुल- जरा छोटे साहब को सलाम करने जाना है।

शीरीं- तो पैदल क्यों नही चले जाते? कौन बड़ी दूर है।

गुल- जो बात तुम्हारी समझ में न आये, उसमें जबान न खोला करो।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book