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प्रेमचन्द की कहानियाँ 24

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :134
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9785

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का चौबीसवाँ भाग


शिवादास बड़े दिन की छुटिटयों में आया हुआ था, इसी समय वह कमरे में आ गया और डाक्टर साहब से बोला- आप पिता जी की कठिनाइयों का स्वयं अनुमान कर सकते हैं। अगर उनकी बात नागवार लगी तो उन्हें क्षमा कीजिएगा।

चैतन्यदास ने छोटे पुत्र की ओर वात्सल्य की दृष्टि से देखकर कहा- तुम्हें यहां आने की जरुरत थी? मैं तुमसे कितनी बार कह चुका हूँ कि यहाँ न आया करो। लेकिन तुमको सबर ही नहीं होता।

शिवादास ने लज्जित होकर कहा- मैं अभी चला जाता हूँ। आप नाराज न हों। मैं केवल डाक्टर साहब से यह पूछना चाहता था कि भाई साहब के लिए अब क्या करना चाहिए।

डाक्टर साहब ने कहा- अब केवल एक ही साधन और है इन्हें इटली के किसी सेनेटारियम मे भेज देना चाहिये।

चैतन्यदास ने सजग होकर पूछा- कितना खर्च होगा?

‘ज्यादा से ज्यादा तीन हजार। साल भर रहना होगा? निश्चय है कि वहां से अच्छे होकर आवेंगे। जी नहीं यहाँ तो यह भयंकर रोग है साधारण बीमारियों में भी कोई बात निश्चय रूप से नहीं कही जा सकती।

‘इतना खर्च करने पर भी वहां से ज्यों के त्यों लौट आये तो? तो ईश्वर की इच्छा। आपको यह तसकीन हो जाएगी कि इनके लिए मैं जो कुछ कर सकता था, कर दिया।

आधी रात तक घर में प्रभुदास को इटली भेजने के प्रस्ताव पर वाद-विवाद होता रहा। चैतन्यदास का कथन था कि एक संदिग्ध फल केलिए तीन हजार का खर्च उठाना बुद्धिमत्ता के प्रतिकूल है। शिवादास भी उनसे सहमत था। किन्तु उसकी माता इस प्रस्ताव का बड़ी दृढ़ता के साथ विरोध कर रही थी। अंत में माता की धिक्कारों का यह फल हुआ कि शिवादास लज्जित होकर उसके पक्ष में हो गया बाबू साहब अकेले रह गये। तपेश्वरी ने तर्क से काम लिया। पति के सदभावों को प्रज्वलित करने की चेष्टा की। धन की नश्वरता की लोकोक्तियां कहीं। इन शस्त्रों से विजय लाभ न हुआ तो अश्रु वर्षा करने लगी। बाबू साहब जल-बिन्दुओं के इस शर प्रहार के सामने न ठहर सके। इन शब्दों में हार स्वीकार की- अच्छा भाई रोओ मत। जो कुछ कहती हो वही होगा।

तपेश्वरी- तो कब?

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