कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 25 प्रेमचन्द की कहानियाँ 25प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का पच्चीसवाँ भाग
यह कहते-कहते माधवी का कंठ रुँध गया और आँखों से प्रेम की धारा बहने लगी। उससे वहाँ न बैठा गया। उठकर प्रणाम किया और विरजन के पास आकर बैठ गयी। वृजरानी ने उसे गले लगा लिया और पूछा- क्या बातचीत हुई?
माधवी- जो तुम चाहती थीं।
वृजरानी- सच, क्या बोले?
माधवी- यह न बताऊंगी।
वृजरानी को मानों पड़ा हुआ धन मिल गया। बोली- ईश्वर ने बहुत दिनों में मेरा मनोरथ पूरा किया। मैं अपने यहाँ से विवाह करूंगी।
माधवी नैराश्य भाव से मुस्करायी। विरजन ने कम्पित स्वर से कहा- हमको भूल तो न जायेगी? उसकी आँखों से आँसू बहने लगे। फिर वह स्वर सँभालकर बोली- हमसे तू बिछुड़ जायेगी।
माधवी- मैं तुम्हें छोड़कर कहीं न जाऊंगी।
विरजन- चल; बातें न बना।
माधवी- देख लेना।
विरजन- देखा है। जोड़ा कैसा पहनेगी?
माधवी- उज्ज्वल, जैसे बगुले का पर।
विरजन- सोहाग का जोड़ा केसरिया रंग का होता है।
माधवी- मेरा श्वेत रहेगा।
विरजन- तुझे चन्द्रहार बहुत भाता था। मैं अपना दे दूंगी।
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