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प्रेमचन्द की कहानियाँ 27

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :94
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9788

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का सत्ताइसवाँ भाग


आखिर लोगों के समझाने से देवकीनाथ तीसरी बार बीवी को मना लाए। मगर अबके मामलात ने कुछ ऐसा तूल खींचा कि स्थाई पृथक्ता हो गई। न उन्होंने बुलाया, न वह आई और आज मियाँ शौहर नई शादी रचाकर अपने दिल की आग बुझा रहे हैं क्या फूलवती के लिए भी यही आज़ादी है? क्या उसे यह आज़ादी होती, तो देवकीनाथ को नई शादी ठानने का हौसला होता?

देवकीनाथ की माँ संदूक़ में ज़ेवरों को सजा रही हैं। नई बहू की खुशी में मतवाली हो रही हैं। इस पर सुन लिया है कि बहू होशियार है, खिदमतगुज़ार है, शर्मीली है। फिर क्या पूछना! उस लक्ष्मी के आते ही घर की रौनक ही कुछ और हो जाएगी। पड़ोसिनें उसे चिढ़ाने को कहती हैं, ''नई बहू जी पढ़ी-लिखी तो खूब होंगी?''

सासजी मुँह बनाकर कहती हैं, ''मुझे मेमसाहब की जरूरत नहीं। मैं दर-गुज़री ऐसी पढ़ी-लिखी से। मुझे अब गँवार बहू चाहिए।''

दरवाजे पर मुंशी जी आकर बोले, ''भई, जल्दी करो। गाड़ी छूट जाएगी। फिर कोई दूसरी साइत नहीं है।''

सास कहती है, ''आप अपना काम देखिए। मुझे कोई देर नहीं है। दर्जी को बुलवा दीजिए। नौशा को कपड़े पहना दे।''

दर्जी ने आकर जोड़ा पहनाया। माली ने आकर सेहरा बाँधा। चमार ने आकर जूती पहनाई। फूफाजी पगड़ी सँवार गए। बुआजी ने आकर आँखों में काजल लगाया। मामीजी ने आकर बंदनवार बाँध दी। दूल्हा आदमी से बंदर बन गया। पैंतालीस साल की उम्र। कुछ-कुछ बालों में सफ़ेदी आ चली थी। दो-चार दाँत भी जवाब दे चुके थे। चेहरे पर झुर्रियाँ पड़ी हुई, मगर सजधज ऐसी, गोया अभी उठती जवानी है। इधर फूलवती के बाप को खबर मिली। चिंता के समुद्र में डूब गए। पहले से खबर होती, तो हाथ-पाँव मारते। मगर अब तो बारात जाने को तैयार है। इस तंग वक्त में वह क्या कर सकते हैं? सोच रहे थे-हम लोगों से तो नीची जातें ही अच्छी हैं। उनको कम-से-कम बिरादरी का तो खौफ़ है। हम लोगों ने तो बेगैरती पर कमर बाँध ली है। हाय! फूलवती को मालूम होगा तो उसकी क्या हालत होगी! आज पंद्रह साल गुज़र गए। उसे क्या आराम मिला? बेवाओं की ज़िंदगी. बसर कर रही है।

उस पर यह नया सदमा! यह नई चोट उससे क्योंकर बर्दाश्त?

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