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प्रेमचन्द की कहानियाँ 27

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :94
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9788

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का सत्ताइसवाँ भाग


इस मजमे में अनुचित अत्याचार के खिलाफ़ क्रोधपूर्ण रोष का एक सैलाब-सा आ गया। खून के बदले के लिए उत्तेजित हो गया। कानून पर अधिकार इस ज़ेहनियत की खुसूसियत है। सैकड़ों आदमी एक अंधे जनून के आलम में मोटर की तरफ़ दौड़े। देवकीनाथ का हाथ पकड़कर मोटर से खींच लिया और दर्रिदों की तरह उन पर चारों तरफ़ से टूट पड़े और एक क्षण में दूल्हा अपनी सारी तमन्नाएँ ले एक अस्थिपुंज बना खूनी सेहरा सर पर रखके जमीन पर एड़ियाँ रगड़ रहा था।

दोनों लाशें आमने-सामने पड़ी थीं। दोनों पर हसरत बरस रही थी। कौन क़ातिल था? कौन मरनेवाला?

पहर रात गए दोनों जनाज़े चले। ढोल-मंजीरे की जगह विलाप की गमबाज़ारी थी। यह नई बारात थी।

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5. बालक

गंगू को लोग ब्राह्मण कहते हैं और वह अपने को ब्राह्मण समझता भी है। मेरे सईस और खिदमतगार मुझे दूर से सलाम करते हैं। गंगू मुझे कभी सलाम नहीं करता। वह शायद मुझसे पालागन की आशा रखता है। मेरा जूठा गिलास कभी हाथ से नहीं छूता और न मेरी कभी इतनी हिम्मत हुई कि उससे पंखा झलने को कहूँ। जब मैं पसीने से तर होता हूँ और वहाँ कोई दूसरा आदमी नहीं होता, तो गंगू आप-ही-आप पंखा उठा लेता है; लेकिन उसकी मुद्रा से यह भाव स्पष्ट प्रकट होता है कि मुझ पर कोई एहसान कर रहा है और मैं भी न-जाने क्यों फौरन ही उसके हाथ से पंखा छीन लेता हूँ। उग्र स्वभाव का मनुष्य है। किसी की बात नहीं सह सकता। ऐसे बहुत कम आदमी होंगे, जिनसे उसकी मित्रता हो; पर सईस और खिदमतगार के साथ बैठना शायद वह अपमानजनक समझता है। मैंने उसे किसी से मिलते-जुलते नहीं देखा। आश्चर्य यह है कि उसे भंग-बूटी से प्रेम नहीं, जो इस श्रेणी के मनुष्यों में एक असाधारण गुण है। मैंने उसे कभी पूजा-पाठ करते या नदी में स्नान करते नहीं देखा। बिलकुल निरक्षर है; लेकिन फिर भी वह ब्राह्मण है और चाहता है कि दुनिया उसकी प्रतिष्ठा तथा सेवा करे और क्यों न चाहे? जब पुरखों की पैदा की हुई सम्पत्ति पर आज भी लोग अधिकार जमाये हुए हैं और उसी शान से, मानो खुद पैदा किये हों, तो वह क्यों उस प्रतिष्ठा और सम्मान को त्याग दे, जो उसके पुरुखाओं ने संचय किया था? यह उसकी बपौती है।

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