कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 29 प्रेमचन्द की कहानियाँ 29प्रेमचंद
|
8 पाठकों को प्रिय 115 पाठक हैं |
प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का उन्तीसवाँ भाग
पंडितजी के मन में कई दिनों तक घोर संग्राम होता रहा। वह अब बिन्नी को पिता की दृष्टि से न देख सकते थे। बिन्नी अब मंगला की बहन और उनकी साली थी। जमाना हँसेगा, तो हँसे; जिन्दगी तो आनन्द से गुजरेगी। उनकी भावनाएं कभी इतनी उल्लासमयी न थीं। उन्हें अपने अंगों में फिर जवानी की स्फूर्ति का अनुभव हो रहा था ! वह सोचते, बिन्नी को मैं अपनी पुत्री समझता था; पर वह मेरी पुत्री है तो नहीं। इस तरह समझने से क्या होता है? कौन जाने, ईश्वर को यही मंजूर हो; नहीं तो बिन्नी यहाँ आती ही क्यों? उसने इसी बहाने से यह संयोग निश्चित कर दिया होगा। उसकी लीला तो अपरम्पार है।
पंडितजी ने वर के पिता को सूचना दे दी कि कुछ विशेष कारणों से इस साल विवाह नहीं हो सकता।
विन्ध्येश्वरी को अभी तक कुछ खबर न थी कि मेरे लिए क्या-क्या षडयंत्र रचे जा रहे हैं। वह खुश थी कि मैं भैयाजी की सेवा कर रही हूँ और भैयाजी मुझसे प्रसन्न हैं ! बहन का इन्हें बड़ा दु:ख है। मैं न रहूँगी, तो यह कहीं चले जायँगे क़ौन जाने, साधु-संन्यासी न हो जायँ ! घर में कैसे मन लगेगा। वह पंडितजी का मन बहलाने का निरंतर प्रयत्न करती रहती थी। उन्हें कभी मनमारे न बैठने देती। पंडितजी का मन अब कचहरी में न लगता था। घण्टे-दो-घण्टे बैठकर चले आते थे। युवकों के प्रेम में विकलता होती है और वृद्धों के प्रेम में श्रृद्धा। वे अपनी यौवन की कमी को खुशामद से, मीठी बातों से और हाजिरजवाबी से पूर्ण करना चाहते हैं। मंगला को मरे अभी तीन ही महीने गुजरे थे कि चौबेजी ससुराल पहुँचे। सास ने मुँहमाँगी मुराद पाई। उसके दो पुत्र थे। घर में कुछ पूँजी न थी।
उनके पालन और शिक्षा के लिए कोई ठिकाना नजर न आता था। मंगला मर ही चुकी थी। लड़की का ज्योही विवाह हो जायगा, वह अपने घर की हो रहेगी। फिर चौबे से नाता ही टूट जायगा। वह इसी चिंता में पड़ी हुई थी कि चौबेजी पहुँचे, मानो देवता स्वयं वरदान देने आये हों। जब चौबेजी भोजन करके लेटे, तो सास ने कहा, 'भैया, कहीं बातचीत हुई कि नहीं?'
पंडित- 'अम्माँ, अब मेरे विवाह की बातचीत क्या होगी?'
सास- 'क्यों भैया, अभी तुम्हारी उम्र ही क्या है?'
पंडित- 'क़रना भी चाहूँ तो बदनामी के डर से नहीं कर सकता। फिर मुझे पूछता ही कौन है? '
|