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प्रेमचन्द की कहानियाँ 29

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :182
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9790

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का उन्तीसवाँ भाग


देखते-देखते अँधेरा छा गया। आकाश में दो एक तारे दिखाई देने लगे। अभी दस मील का मंजिल बाकी थी। जिस तरह काली घटा को सिर पर मँडलाते देखकर गृहिणी दौड़-दौड़कर सुखावन समेटने लगती है, उसी भाँति लीलाधर ने दौड़ना शुरू किया। उन्हें अकेले पड़ जाने का भय न था। भय था अँधेरे में राह भूल जाने का। दाहिने-बाँए बस्तियाँ छूटती जाती थीं। पंडितजी को ये गाँव के इस समय बहुत सुहावने मालूम होता थे। कितने आनंद से लोग अलाव के सामने बैठे ताप रहे हैं।

सहसा उन्हें एक कुत्ता दिखाई दिया। न जाने किधर से आकर वह उनके सामने पगडंडी पर चलने लगा। पंडितजी चौक पड़े पर एक क्षण में उन्होंने कुत्ते को पहचान लिया। वह बूढ़े चौधरी का कुत्ता मोती था। वह गाँव छोड़कर आज इधर इतनी दूर कैसे आ निकला? क्या वह जानता था कि पंडितजी दवा लेकर आ रहे होंगे, कहीं रास्ता न भूल जायँ? कौन जानता है कि पंडितजी ने एक बार ‘मोती’ कहकर पुकारा, तो कुत्ते ने दुम हिलायी पर रुका नहीं। वह इससे अधिक परिचय देकर समय नष्ट नहीं करना चाहता था। पंडितजी को ज्ञान हुआ कि ईश्वर मेरे साथ है, वही मेरी रक्षा कर रहे हैं। अब उन्हें कुशल से घर पहुँचने का विश्वास हो गया।

दस बजते-बजते पंडितजी घर पहुँच गए।

रोग घातक न था, पर यश पंडितजी को बदा था। एक सप्ताह के बाद तीनों चंगे हो गए। पंडितजी की कीर्ति दूर-दूर तक फैल गई। उन्होंने यम देवता से घोर संग्राम करके इन आदमियों को बचा लिया था। उन्होंने देवताओं पर भी विजय पा ली थी - असम्भव को सम्भव कर दिखाया था। वह साक्षात भगवान थे उनके दर्शनों के लिए लोग दूर-दूर के आने लगे। किन्तु पंडितजी को अपनी कीर्ति से इतना आनंद न होता था, जितना रोगियों को चलते-फिरते देखकर।

चौधरी ने कहा- महाराज, तुम साच्छात भगवान हो। तुम न आ जाते तो हम न बचते।

पंडित जी बोले- मैंने कुछ नहीं किया। वह सब ईश्वर की दया है।

चौधरी- अब हम तुम्हें कभी न जाने देंगे। जाकर अपने बाल-बच्चे को ले आओ।

पंडित- हाँ मैं भी यही सोच रहा हूँ। तुमको छोड़कर अब नहीं जा सकता।

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