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प्रेमचन्द की कहानियाँ 31

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :155
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9792

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का इकतीसवाँ भाग


मैंने मुस्कराकर कहा- ''इसकी तरकीब यही है कि पान न खाओ।''

''जी तो नहीं मानता।''

''आप ही मान जाएगा।''

''बिना सिगरेट पिए तो मेरा पेट फूलने लगता है।''

''फूलने दो, आप पिचक जाएगा।''

''अच्छा तो लो, आज से मैंने पान और सिगरेट छोड़ा।''

''तुम क्या छोड़ोगे। तुम नहीं छोड़ सकते।''

मैंने उनको उत्तेजित करने के लिए वह शंका की थी। इसका यथेष्ट प्रभाव पड़ा। वह दृढ़ता से बोले- ''तुम यदि छोड़ सकते हो, तो मैं भी छोड़ सकता हूँ। मैं तुमसे किसी बात में कम नहीं हूँ।''

''अच्छी बात है, देखूँ।''

''देख लेना।''

मैंने इन्हें आज तक पान या सिगरेट का सेवन करते नहीं देखा था।

पाँचवें महीने में जब मैं रुपए लेकर दानू बाबू के पास गया, तो सच मानो वह टूटकर मेरे गले से लिपट गए। बोले- ''हो यार तुम धुन के पक्के, मगर सच कहना मुझे मन में कोसते तो नहीं?''

मैंने हँसकर कहा- ''अब तो नहीं कोसता, मगर पहले जरूर कोसता शा।''  

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