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प्रेमचन्द की कहानियाँ 34

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :146
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9795

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का चौंतीसवाँ भाग


लाश मोटर पर रखी गई। मोटर गुलाब के फूलों से सजाया गया था। किसी ने पुकारा, ''राम नाम सत्य है!''

रसिकलाल ने उसे विनोद-भरी आखों से देखा, ''तुम भूले जाते हो, लाला। यह विवाह का उत्सव है। हमारे लिए सत्य जीवन है, उसके सिवा जो कुछ है, मिथ्या है।''

बाजे-गाजे के साथ बारात चली। इतना बड़ा जुलूस तो मैंने शहर में नहीं देखा। विवाह के जुलूस में दो-चार सौ आदमियों से ज्यादा न होते। इस जुलूस की संख्या लाखों से कम न थी। धन्य हो रसिकलाल! धन्य तुम्हारा कलेजा! रसिकलाल उसी बाँकी अदा से मोटर के पीछे घोड़े पर सवार चले जा रहे थे। जब लाश चिता पर रखी गई तो रसिकलाल ने एक बार जोर से छाती पर हाथ मारा। मानवता ने विद्रोही आत्मा को आंदोलित किया, पर दूसरे ही क्षण उनके मुख पर वही कठोर मुस्कान चमक उठी। मानवता वहू थी या यह, कौन कहे?

उसके दो दिन बाद मैं नौकरी पर लौट गया। जब छुट्टियाँ होती हैं तो रसिकलाल से मिलने आता हूँ। उन्होंने उस विद्रोह का एक अंश मुझे भी दे दिया है। अब जो कोई उनके आचार-व्यवहार पर आक्षेप करता है तो मैं केवल मुस्करा देता हूँ।

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3. रक्षा में हत्या

केशव के घर में एक कार्निस के ऊपर एक पंडुक ने अंडे दिए थे। केशव और उसकी बहन श्यामा दोनों बड़े गौर से पंडुक को वहाँ आते-जाते देखा करते। प्रात:काल दोनों आँखें मलते कार्निस के सामने पहुँच जाते और पंडुक या पंडुकी या दोनों को वहाँ बैठा पाते। उनको देखने में दोनों बालकों को न जाने क्या मजा मिलता था। दूध और जलेबी की सुध भी न रहती थी। दोनों के मन में भाँति-भाँति के प्रश्न उठते - अंडे कितने बड़े होंगे, किस रंग के होंगे, कितने होंगे, क्या खाते होंगे, उनमें से बच्चे कैसे निकल आवेंगे, बच्चों के पंख कैसे निकलेंगे, घोंसला कैसा है, पर इन प्रश्नों का उत्तर देनेवाला कोई न था। अम्मा को घर के काम-धंधों से फुरसत न थी - बाबूजी को पढ़ने लिखने से। दोनों आपस ही में प्रश्नोत्तर करके अपने मन को संतुष्ट कर लिया करते थे।

श्यामा कहती - क्यों भैया, बच्चे निकल कर फर्स्ट से उड़ जाएँगे? केशव पंडिताई भरे अभिमान से कहता - नहीं री पगली, पहले पंख निकलेंगे। बिना परों के बिचारे कैसे उड़ेंगे।

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