कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 34 प्रेमचन्द की कहानियाँ 34प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का चौंतीसवाँ भाग
श्यामा - बच्चों को क्या खिलाएगी बिचारी?
केशव इस जटिल प्रश्न का उत्तर कुछ न दे सकता।
इस भाँति तीन-चार दिन बीत गए। दोनों बालकों की जिज्ञासा दिन-दिन प्रबल होती जाती थी। अंडों को देखने के लिए वे अधीर हो उठते थे। उन्होंने अनुमान किया, अब अवश्य बच्चे निकल आए होंगे। बच्चों के चारे की समस्या अब उनके सामने आ खड़ी हुई। पंडुकी बिचारी इतना दान कहाँ पावेगी कि सारे बच्चों का पेट भरे। गरीब बच्चे भूख के मारे धूं-धूं कर मर जाएँगे।
इस विपत्ति की कल्पना करके दोनों व्याकुल हो गए। दोनों ने निश्चय किया कि कार्निस पर थोड़ा-सा दाना रख दिया जाए। श्यामा प्रसन्न होकर बोली - तब तो चिड़ियों को चारे के लिए कहीं उड़ कर न जाना पड़ेगा न?
केशव - नहीं, तब क्यों जाएगी।
श्यामा - क्यों भैया, बच्चों को धूप न लगती होगी?
केशव का ध्यान इस कष्ट की ओर न गया था - अवश्य कष्ट हो रहा होगा। बिचारे प्यास के मारे तड़पते होंगे, ऊपर कोई साया भी तो नहीं।
आखिर यही निश्चय हुआ कि घोंसले के ऊपर कपड़े की छत बना देना चाहिए। पानी की प्याली और थोड़ा-सा चावल रख देने का प्रस्ताव भी पास हुआ।
दोनों बालक बड़े उत्साह से काम करने लगे। श्यामा माता की आँख बचा कर मटके से चावल निकाल लाई। केशव ने पत्थर की प्याली का तेल चुपके से जमीन पर गिरा दिया और उसे खूब साफ करके उसमें पानी भरा।
अब चाँदनी के लिए कपड़ा कहाँ से आए? फिर, ऊपर बिना तीलियों के कपड़ा ठहरेगा कैसे और तीलियाँ खड़ी कैसे होंगी?
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