कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 35 प्रेमचन्द की कहानियाँ 35प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का पैंतीसवाँ भाग
राजमहल में आग लगाकर हनुमान बस्ती की तरफ झुके। छतों से छतें मिली हुई थीं। एक घर से दूसरे घर में कूद जाना कठिन न था। घण्टे भर में सारा शहर आग के परदे में ढक गया। चारों तरफ कुहराम मच गया। कोई अपना असबाब निकालता था, कोई पानी पानी चिल्लाता था। कितने ही आदमी जो नीचे न उतर सके, जलभुन गये। संयोग से उसी समय जोर की हवा चलने लगी, आग और भी भड़क उठी, मानो हवा अग्नि देवता की सहायता करने आयी है। ऐसा मालूम होता था कि आसमान से आग के तख्ते बरस रहे हैं।
शहर की होली बनाकर हनुमान समुद्र की तरफ भागे और पानी में कूदकर दुम की आग बुझायी। उन्होंने लंकावासियों को सचमुच विचित्र और अनोखा तमाशा दिखा दिया।
हनुमान ने रातोंरात समुद्र को पार किया और अपने साथियों से जा मिले। यह बेचारे घबरा रहे थे कि न जाने हनुमान पर क्या विपत्ति आयी। अब तक नहीं लौटे। अब हम लोग सुग्रीव को क्या मुंह दिखावेंगे। रामचन्द्र के सामने कैसे जायेंगे। इससे तो यह कहीं अच्छा है कि यहीं डूब मरें। इतने ही में हनुमान जा पहुंचे। उन्हें देखते ही सबके-सब खुशी से उछलने लगे। दौड़-दौड़कर उनसे गले मिले और पूछने लगे- कहो भाई, क्या कर आये? सीता जी का कुछ पता चला? रावण से कुछ बातचीत हुई? हम लोग तो बहुत विकल थे।
हनुमान ने लंका का सारा हाल कह सुनाया। रावण के महल में जाना, अशोक के वन में सीता जी के दर्शन पाना, वाटिका को उजाड़ना, राक्षसों को मारना, मेघनाद के हाथों गिरफ्तार होना, फिर लंका को जलाना, सारी बातें विस्तार से वर्णन कीं। सब ने हनुमान की वीरता और कौशल को सराहा और गा-बजाकर सोये। मुंह अंधेरे किष्किंधापुरी को रवाना हुए। सैकड़ों कोसों की यात्रा थी। पर ये लोग अपनी सफलता पर इतने प्रसन्न थे कि न दिन को आराम करते, न रात को सोते। खाने-पीने की किसी को सुध न थी। शीघ्र रामचन्द्र जी के पास पहुंचकर यह शुभ समाचार सुनाने के लिए अधीर हो रहे थे। आखिर कई दिनों के बाद किष्किन्धा पहाड़ दिखायी दिया। उसी के निकट राजा सुग्रीव का एक बाग था। उसका नाम मधुवन था। उसमें बहुत-सी शहद की मक्खियां पली थीं। सुग्रीव को जब शहद की जरूरत पड़ती तो उसी बाग से लेता था।
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