कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 35 प्रेमचन्द की कहानियाँ 35प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का पैंतीसवाँ भाग
जब यह लोग मधुवन के पास पहुंचे तो शहद के छत्ते को देखकर उनकी लार टपक पड़ी। बेचारों ने कई दिन से खाना नहीं खाया था। तुरन्त बाग में घुस गये और शहद पीना आरम्भ कर दिया। बाग़ के मालियों ने मना किया तो उन्हें खूब पीटा। शहद की लूट मच गयी। सुग्रीव को जब समाचार मिला कि हनुमान, अंगद, जामवंत इत्यादि मधुवन में लूट मचाये हुए हैं, तो समझ गया कि यह लोग सफल होकर लौटे हैं। असफल लौटते तो यह शरारत कब सूझती। तुरन्त उनकी अगवानी करने चल खड़ा हुआ। इन लोगों ने उसे आते देखा तो और भी उधम मचाना शुरू किया।
सुग्रीव ने हंसकर कहा- मालूम होता है, तुम लोगों ने कई-कई दिन से मारे खुशी के खाना नहीं खाया है। आओ, तुम्हें गले लगा लूं।
जब सब लोग सुग्रीव से गले मिल चुके, तो हनुमान ने लंका का सारा वृत्तान्त कह सुनाया। सुग्रीव खुशी से फूला न समाया। उसी समय उन लोगों को साथ लेकर रामचन्द्र के पास पहुंचा। रामचन्द्र भी उनकी भावभंगी से ताड़ गये कि यह लोग सीता जी का पता लगा लाये। इधर कई दिनों से दोनों भाई बहुत निराश हो रहे थे। इन लोगों को देखकर आशा की खेती हरी हो गयी।
रामचन्द्र ने पूछा- कहो; क्या समाचार लाये? सीता जी कहां हैं? उनका क्या हाल है?
हनुमान ने विनोद करके कहा- महाराज, कुछ इनाम दिलवाइये तो कहूं।
राम- धन्यवाद के सिवा मेरे पास और क्या है जो तुम्हें दूं। जब तक जीवित रहूंगा, तुम्हारा उपकार मानूंगा।
हनुमान- वायदा कीजिए कि मुझे कभी अपने चरणों से विलग न कीजियेगा।
राम- वाह! यह तो मेरे ही लाभ की बात है। तुम जैसे निष्ठावान मित्र किसको सुलभ होते हैं! हम और तुम सदैव साथ रहें, इससे बढ़कर मेरे लिए प्रसन्नता की बात और क्या हो सकती है? सीता जी क्या लंका में हैं?
हनुमान- हां महाराज, लंका के अत्याचारी राजा रावण ने उन्हें एक बाग में कैद कर रखा है और नाना प्रकार के कष्ट दे रहा है। कभी धमकाता है, कभी फुसलाता है; किन्तु वह उसकी तनिक भी परवाह नहीं करतीं। जब मैंने आपकी अंगूठी दी, तो उसे कलेजे से लगा लिया और देर तक रोती रहीं। चलते समय मुझसे कहा कि प्राणनाथ से कहना कि शीघ्र मुझे इस कैद से मुक्त करें, क्योंकि अब मुझमें अधिक सहने का बल नहीं। यह कहकर हनुमान ने सीता जी की वेणी रामचन्द्र के हाथ में रख दी।
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