कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 35 प्रेमचन्द की कहानियाँ 35प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का पैंतीसवाँ भाग
रामचन्द्र ने इस वेणी को देखा तो बरबस उनकी आंखों से आंसू जारी हो गये। उसे बारबार चूमा और आंखों से लगाया। फिर बड़ी देर तक सीता जी ही के सम्बन्ध में बातें पूछते रहे। इन बातों से उनका जी ही न भरता था। वह कैसे कपड़े पहने हुए थीं? बहुत दुबली तो नहीं हो गयी हैं? बहुत रोया तो नहीं करतीं? हनुमान जी प्रत्येक बात का उत्तर देते जाते थे और मन में सोचते थे, इन स्त्री और पुरुष में कितना प्रेम है!
थोड़ी देर तक कुछ सोचने के बाद रामचन्द्र ने सुग्रीव से कहा- अब आक्रमण करने में देर न करनी चाहिये। तुम अपनी सेना को कब तैयार कर सकोगे?
सुग्रीव ने कहा- महाराज? मेरी सेना तो पहले से ही तैयार है, केवल आपके आदेश की देर है।
राम- युद्ध के सिवा और कोई चारा नहीं है।
सुग्रीव- ईश्वर ने चाहा तो हमारी जीत होगी।
राम- औचित्य की सदैव जीत होती है।
हनुमान के चले जाने के बाद राक्षसों को बड़ी चिन्ता हुई। उन्होंने सोचा, जिस सेना का एक सैनिक इतना बलवान और वीर है, उस सेना से भला कौन लड़ेगा! उस सेना का नायक कितना वीर होगा! एक आदमी ने आकर सारी लंका में हलचल मचा दी। यदि वीर मेघनाद स्वयं न जाता तो सम्भवतः हमारी सारी सेना मिलकर भी उसे न पकड़ सकती। कितना गजब का चतुर आदमी था? दुम तो लगायी गयी उसकी हंसी उड़ाने के लिए, उसका बदला उसने यह दिया कि सारी लंका जला डाली; और कोई भी न पकड़ सका साफ निकल गया। अब रामचन्द्र की सेना दो-चार दिन में लंका पर चढ़ आयेगी। राजा रावण और राजकुमार मेघनाद कितने ही वीर हो; किन्तु सेना का सामना नहीं कर सकते। इस एक स्त्री के लिये रावण सारे देश को नष्ट करना चाहता है। यदि वह रामचन्द्र के पास न भेज दी गयी और उनसे क्षमा न मांगी गयी, तो अवश्य लंका पर विपत्ति आयेगी।
दूसरे दिन शहर से खास-खास आदमी रावण की सेवा में उपस्थित हुए और विनय की- महाराज! आपके राज्य में हम लोग अब तक बड़े आराम और चैन से रहे, अब हमें ऐसा भय हो रहा है कि इस देश पर कोई विपत्ति आने वाली है। हमारी आपसे यही प्रार्थना है कि आप सीता जी को रामचन्द्र के पास पहुंचा दें और देश को इस आने वाली विपत्ति से बचा लें।
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