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प्रेमचन्द की कहानियाँ 35

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :380
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9796

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का पैंतीसवाँ भाग


लोग बादशाह के पास पहुँचे। अद्भुत् दृश्य था। बादशाह रोशनुद्दौला की छाती पर सवार थे। जब गोरे जान लेकर भागे, तो बादशाह ने इस नर पिशाच को पकड़ लिया था, और उसे बलपूर्वक भूमि पर गिराकर उसकी छाती पर बैठ गए थे। अगर उनके हाथों में हथियार होता, तो इस वक्त रोशनुद्दौला की लाश फड़कती हुई दिखाई देती।

राजा बख्तावरसिंह आगे बढ़कर बादशाह को आदाब बजा लाये। लोगों की जय-ध्वनि से आकाश हिल उठा। कोई बादशाह के पैरों को चूमता, कोई उन्हें आशीर्वाद देता। रोशनुद्दौला का शरीर तो लात और घूसों का लक्ष्य बना हुआ था। कुछ बिगड़े दिल ऐसे भी थे, जो उसके मुँह पर थूकते भी संकोच न करते थे।

प्रातःकाल था। लखनऊ में आनंदोत्सव मनाया जा रहा था। बादशाही महल के सामने लाखों आदमी जमा थे। सब लोग बादशाह को यथायोग्य नजर देने आये थे। जगह-जगह गरीबों को भोजन कराया जा रहा था। शाही नौबतखाने में नौबत बज रही थी।
दरबार सजा। बादशाह हीरे-जवाहरात से जगमगाते, रत्नजटित आभूषणों से सजे हुए सिंहासन पर आ विराजे। रईसों और अमीरों ने नजरें गुजारी! शायरों ने कसीदे पढ़े। एकाएक बादशाह ने पूछा- राजा बख्तावरसिंह कहाँ हैं?

कप्तान ने जवाब दिया- कैदखाने में।

बादशाह ने उसी वक्त कई कर्मचारियों को भेजा कि राजा साहब को जेलखाने से इज्जत के साथ लावें। जब थोड़ी देर के बाद राजा ने आकर बादशाह को सलाम किया, वह तख्त से उतरकर उनसे गले मिले, और उन्हें अपनी दाहिनी ओर सिंहासन पर बैठाया। फिर दरबार में खड़े होकर उनकी सुकीर्ति और राज्य भक्ति की प्रशंसा करने के उपरांत अपने ही हाथों से उन्हें खिलअत पहनायी। राजा साहब के कुटुम्ब के प्राणी भी आदर और सम्मान के साथ विदा किए गए।

अंत को जब दोपहर के समय दरबार बर्खास्त होने लगा, तो बादशाह ने राजा साहब से कहा- आपने मुझ पर मेरी सल्तनत पर जो एहसान किया है, उसका सिला (पुरस्कार) देना मेरे इमकान से बाहर है। मेरी आपसे यही इल्तिजा (अनुरोध) है कि आप वजारत की कलमदान हाथ में लीजिए, और सल्तनत का, जिस तरह मुनासिब समझिए, इंतजाम कीजिए। मैं आपके किसी काम में दखल न दूँगा। मुझे एक गोशे में पड़ा रहने दीजिए। नमकहराम रोशन को भी मैं आपके सुपुर्द किए देता हूँ। आप जो सजा चाहे दें। मैं इसे कब का जहन्नुम भेज चुका होता; पर यह समझकर कि यह आपका शिकार है, इसे छोड़े हुए हूँ!

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