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प्रेमचन्द की कहानियाँ 36

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :189
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9797

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का छत्तीसवाँ भाग


जुगनू- ''मिजाज की तेदर मालूम होती हैं।''

खान.- ''नहीं, यों तो बहुत नेक हैं, हाँ गिरजे नहीं जातीं। तुम क्या नौकरी की तलाश में हो? करना चाहो तो कर लो, एक आया रखना चाहती हैं।''

जुगनू- ''नहीं बेटा, मैं अब क्या नौकरी करूँगी। इस बँगले में पहले जो मेम साहब रहती थीं, वह मुझ पर वड़ी निगाह रखती थीं। मैंने समझा चलूँ नई मेम साहब को आशीर्वाद दे आऊँ।''

खानसामा- ''यह आसिरबाद लेने वाली मेम साहब नहीं हैं। ऐसों से बहुत चिढ़ती हैं। कोई मँगता आया और उसे डाँट बताई। कहती हैं बिना काम किए किसी को जिंदा रहने का हक नहीं है। भला चाहती हो, तो चुपके से राह लो।''

जुगनू- ''तो यह कहो इनका कोई धर्म-कर्म नहीं है। फिर भला ग़रीबों पर क्यों दया करने लगीं।''

जुगनू को अपनी दीवार खड़ी करने के लिए काफ़ी सामान मिल गया--नीचे खानदान की है। माँ से नहीं पटती, धर्म से विमुख है। पहले धावे में इतनी सफलता कुछ कम न थी। चलते-चलते खानसामा से इतना और पूछा- ''इनके साहब क्या करते हैं।''

खानसामा ने मुसकिराकर कहा- ''इनकी तो अभी शादी ही नहीं हुई। साहब कहाँ से होंगे।''

जुगनू ने बनावटी आश्चर्य से कहा- ''अरे! अभी तक ब्याह ही नहीं हुआ! हमारे यहाँ तो दुनिया हँसने लगे।''

खान.- ''अपना-अपना रिवाज है। इनके यहाँ तो कितनी ही औरतें उम्र-भर ब्याह नहीं करतीं।''

जुगनू ने मार्मिक भाव से कहा- ''ऐसी क्यारियों को मैं भी बहुत देख चुकी। हमारी बिरादरी में कोई इस तरह रहे, तो धुड़ी-थुड़ी हो जाए। मुदा इनके यहाँ जो जी में आवे करो, कोई नहीं पूछता।''

इतने में मिस खुरशेद आ पहुँचीं। गुलाबी जाड़ा पड़ने लगा था। मिस साहब साड़ी के ऊपर ओवरकोट पहने हुए थीं। एक हाथ में छतरी थी, दूसरे में छोटे कुत्ते की जंजीर। प्रभात की शीतल वायु में व्यायाम ने कपोलों को ताज़ा और सुर्ख कर दिया था। जुगनू ने झुककर सलाम किया, पर उन्होंने उसे देखकर भी न देखा। अंदर जाते ही खानसामा को बुलाकर पूछा- ''यह औरत क्या करने आई है?''

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