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प्रेमचन्द की कहानियाँ 36

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :189
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9797

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का छत्तीसवाँ भाग


गोबर चौकीदार बोला- ''मुदा भैया हुद्या बहुत बड़ा मारू रहै। कई जिला भरेमां उस बडवार हुद्या कोऊ नाहीं पायेस।''

भोजू कुरमी बोले- ''हुद्या तो भारू रहै मुदा कितने गरीबन के गला रेतै का परत रहा। सैकरन का जेहल पठै दिये होइ हैं। ई लड़ाई मा गरीबन का मार-मार केत् करजा दियावै के परा होई। दौड़ा करै जात रहे होइ हैं तो केतना बेगार लेका परत रहा होई। हज्जारन किसानन का बेदखली; कुड़की, अखराज इनके हाथन भया होई, अब घर मां रहिहैं तो ई पापन से तो गला छूट जाई।''

गोबर- ''रुआब केतना रहे, हकूमत केतनी रहै।''

भोरल ''रुआब हुद्या से नहीं होत है, रुआब भलमनसी से होत है, विद्या से होत है। रामभरोसे पंडित का देख के काहे सब कोऊ खटिया से उठ के पैलगी करत है। थानेदार आवत हैं तो उनकी खातिर सेर भर आटा देत सबका केतना अखरत है, नाहीं तो सासतरीजी जे के घर अपने चार छ चेलन सहित जाय परत हैं ऊ आपन भाग सराहत हैं। जिला में एक-से-एक हाकिम परे हैं। महात्माजी के बरोबर है कोऊ का रुआब? आज हुकुम दें तो मनई आगमा कूदै का तैयार हैं।''

रामभरोसे- ''संत बिलास बाबू नाहीं देख परत हैं।''

हरिविलास- ''कॉलेज में वकालत पढ़ रहे हैं।''

रामभरोसे- ''ई विद्या तो भैया तुम उनका नाहक पढावत हौ। बड़ा-बड़ा कुकरम करै का परत है। ओकिलन का मारा जिला तबाह होइगबा, सब मारेन लड़ाय-लड़ाय के देस का खोखला कै दिहेन।''

ईदू- ''बाबू तुम अब आपन जमीन छोड़ाय लेब और मज़े से खेती करो। चाकरी बहुत दिन किह्यो, अब कुछ दिन गृहस्थी का मजा लेब। उतना सुख तो न पैहौ पर चोला आनंद रही। परदेसवाँ जौन कमात रहे होइहो तौ न सब कपड़ा-लत्ता, कुरसी-मेज, मेवा-मिठाईयाँ उड़ जात रहा होई। पच्चीस-तीस रुपए का तो दूध पी जात रहा होइ हौ, तीस-चालीस से कम घर का किराया न परत रहा होई। तुम्हार कुल खेत छूट जाय तो मजे से चार हर की खेती होय लागे।''

हरिविलास ने संकोच से मुस्कुराकर कहा- ''रुपए कहाँ से लाऊँ?''

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