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प्रेमचन्द की कहानियाँ 40

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :166
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9801

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का चालीसवाँ भाग



कानूनदाँ बितान की पत्नी भी अपने तीनों लड़कों को लिये हुए निकली। शान की पत्नी भी अपने दोनों लड़कों के साथ उपस्थित हुई। गुरदीन ने मीठी-मीठी बात करनी शुरू की। पैसे झोली में रखे, धेले-धेले की मिठाई दी, धेले-धेले का आशीर्वाद। लड़के दोने लिये उछलते-कूदते घर में दाखिल हुए। अगर सारे गाँव में कोई ऐसा बालक था, जिसमें गुरदीन की उदारता से लाभ न उठाया हो, तो वह बाकें गुमान का लड़का धान था।

यह कठिन था कि बालक धान आपने भाइयों, बहिनों को हँस-हँस और उछल उछलकर मिठाइयाँ खाते देखते और सब्र कर जाए। उस पर तुर्रा यह कि वह उसे मिठाइयाँ दिखा-दिखाकर ललचाते और चिढ़ाते थे। बेचारा धान चीखता था और अपनी माता का आँचल पकड़-पकड़कर दरवाजे की तरफ खींचता था। पर वह अबला क्या करे? उसका हृदय बच्चे के लिए ऐंठ-ऐंठ कर रह जाता था। उसके पास एक पैसा भी नहीं था। अपने दुर्भाग्य पर, जेठानियों की निठुरता पर और सबसे ज्यादा अपने पति के निखट्टूपन पर कुढ़-कुढ़कर रह जाती थी। अपना आदमी ऐसा निकम्मा न होता, तो क्यों दूसरों का मुँह देखना पड़ता, क्यों दूसरों के धक्के खाने पड़ते? उसने धान को गोद में उठा लिया और प्यार से दिलासा देने लगी– बेटा! रोओ मत, अबकी गुरदीन आवेगा, तो मैं तुम्हें बहुत-सी-मिठाई ले दूँगी। मैं इससे अच्छी मिठाई बाजार से मँगवा दूँगी, तुम कितनी मिठाई खाओगे। यह कहते कहते उसकी आँख भर आयीं; आह! यह मनहूस मंगल आज फिर आवेगा और फिर यही बहाने करने पड़ेंगे! हाय! अपना प्यारा बच्चा धेले की मिठाई को तरसे और घर में किसी का पत्थर-सा कलेजा न पसीजे। वह बेचारी तो इन चिंताओं में डूबी हुई थी और धान किसी तरह चुप ही न होता था। जब कुछ वश न चला, माँ की गोद से उतर कर जमीन पर लोटने लगा और रो-रोकर दुनिया सिर पर उठा ली। माँ ने बहुत बहलाया फुसलाया, यहाँ तक कि उसे बच्चे की हठ पर क्रोध आ गया। मानव हृदय के रहस्य कभी समझ नहीं आते। कहाँ तो बच्चे को प्यार से चिपटाती थी, कहाँ ऐसी झल्लायी कि उसे दो तीन थप्पड़ जोर से लगाए और घुड़ककर बोली– चुप रह अभागे! तेरा ही मुँह मिठाई खाने का है, अपने दिन को नहीं रोता। मिठाई खाने चला है!

बाँका गुमान अपनी कोठरी के द्वार पर बैठा हुआ यह कौतुक बड़े ध्यान से देख रहा था। वह इस बच्चे को बहुत चाहता था। इस वक्त के थप्पड़ उसके हृदय में तेज भाले के समान लगे और चुभ गए। शायद उसका अभिप्राय भी यही था। धुनिया रुई को धुनने के लिए ताँत पर चोट लगाता है।

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