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प्रेमचन्द की कहानियाँ 41

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :224
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9802

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का इकतालीसवाँ भाग


सैंकड़ों निगाहे मसऊद के पुरजोश चेहरे की तरफ उठ गयी। सरदारों की त्योरियों पर बल पड़ गये और सिपाहियों के सीने जोश से धड़कने लगे। सरदार नमकखोर ने उसे गले से लगा लिया और बोले- मसऊद, तेरी हिम्मत और हौसले की दाद देता हूँ। तू हमारी फौज की शान है। तेरी सलाह मर्दाना सलाह है। बेशक हम किलेबंद न होंगे। हम दुश्मन के मुकाबले में ताल ठोंककर आयेंगे और अपने प्यारे जन्नतनिशॉँ के लिए अपना खून पानी की तरह बहायेंगे। तू हमारे लिए आगे-आगे चलनेवाली मशाल है और हम सब आज इसी रोशनी में कदम आगे बढ़ायेंगे।

मसऊद ने चुने हुए सिपाहियों का एक दस्ता तैयार किया और कुछ इस दमखम और कुछ इस जोशखरोश से मीर शुजा पर टूटा कि उसकी सारी फौज में खलबली पड़ गयी। सरदार नमकखोर ने जब देखा कि शाही फौज के कदम डगमगा रहे हैं, तो अपनी पूरी ताकत से बादल और बिजली की तरह लपका और तेगों से तेगें और बर्छियों से बर्छियॉँ खड़कने लगीं। तीन घंटे तक बला का शोर मचा रहा, यहॉँ तक कि शाही फौज के कदम उखड़ गये और वह सिपाही जिसकी तलवार मीर शुजा से गले मिली मसऊद था।

तब सरदारी फौज और अफसर सब के सब लूट के माल पर टूटे और मसऊद जख्मों से चूर और खून में रँगा हूआ अपने कुछ जान पर खेलनेवाले दस्तों के साथ मस्कात के किले की तरफ लौटा मगर जब होश ने आंखें खोलीं और हवास ठिकाने हुए तो क्या देखता है कि वह एक सजे हुए कमरे में मखमली गद्दे पर लेटा हुआ है। फूलों की सुहानी महक और लम्बी छरहरी सुन्दरियों के जमघट से कमरा चमन बना हुआ था। ताज्जुब से इधर-उधर ताकने लगा कि इतने में एक अप्सरा-जैसी सुन्दर युवती तश्त में फूलों का हार लिये धीरे-धीरे आती हुई दिखायी दी कि जैसे बहार फूलों की डाली पेश करने आ रही है। उसे देखते ही उन लंबी छरहरी सुन्दरियों ने आंखें बिछायीं और उसकी हिनाई हथेली को चूमा। मसऊद देखते ही पहचान गया। यह मलिका शेर अफगान थी।

मलिका ने फूलों का हार मसऊद के गले में डाला। हीरे-जवाहरात उस पर चढ़ाये और सोने के तारों से टँकी हुई मसनद पर बड़ी आन-बान से बैठ गयी। साजिन्दों ने बीन ले-लेकर विजयी अतिथि के स्वागत में सुहागे राग अलापने शुरू किये।

यहॉँ तो नाच-गाने की महफिल थी, उधर आपसी डाह ने नये-नये शिगूफे खिलाये। सरदार ने शिकायत की कि मसऊद जरूर दुश्मन से जा मिला है और आज जान-बूझकर फौज का एक दस्ता लेकर लड़ने को गया था ताकि उसे खाक और खून में सुलाकर सरदारी फौज को बेचिराग कर दे। इसके सबूत में कुछ जाली खत भी दिखाये गये और इस कमीनी कोशिश में जबान की ऐसी चालाकी ने काम लिया कि आखिर सरदार को इन बातों पर यकीन आ गया। पौ फटे जब मसऊद मलिका शेर अफगान के दरबार से विजय का हार गले में डाले सरदार को बधाई देने गया तो बजाय इसके कि कद्रदानी का सिरोपा और बहादुरी का तमगा पाये, उसकी खरी-खोटी बातों के तीर का निशाना बनाया गया और हुक्म मिला कि तलवार कमर से खोलकर रख दे।

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