कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 41 प्रेमचन्द की कहानियाँ 41प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का इकतालीसवाँ भाग
उधर सरदार नमकखोर धीरे-धीरे राजधानी की तरफ बढ़ता आता था, यकायक उसे खबर मिली कि अमीर पुरतदबीर बीस हजार पैदल और सवारों के साथ मुकाबिले के लिए आ रहा है।
यह सुनते ही सरदार नमकखोर की हिम्मतें छूट गयी। अमीर पुरतदबीर बुढ़ापे के बावजूद अपने वक्त का एक ही सिपहसालार था। उसका नाम सुनकर बड़े-बड़े बहादुर कानों पर हाथ रख लेते थे। सरदार नमकखोर का खयाल था कि अमीर कहीं एक कोने में बैठे खुदा की इबादत करते होंगे। मगर उनको अपने मुकाबिले में देखकर उसके होश उड़ गये कि कहीं ऐसा न हो कि इस हार से हम अपनी सारी जीत खो बैठें और बरसों की मेहनत पर पानी फिर जाय। सबकी यही सलाह हुई कि वापस चलना ही ठीक है। उस वक्त शेख मखमूर ने कहा- ऐ सरदार नमकखोर ! तूने मुल्के जन्नतनिशॉँ को छुटकारा दिलाने का बीड़ा उठाया है। क्या इन्हीं हिम्मतों से तेरी आरजुएँ पूरी होंगी? तेरे सरदार और सिपाहियों ने कभी मैदान से कदम पीछे नहीं हटाया, कभी पीठ नहीं दिखायी, तीरों की बौछार को तुमने पानी की फुहार समझा और बन्दूकों की बाढ़ को फूलों की बहार। क्या इन चीजों से इतनी जल्दी तुम्हारा जी भर गया? तुमने यह लड़ाई सल्तनत को बढ़ाने के कमीने इरादे से नहीं छेड़ी है। तुम सच्चाई और इन्साफ की लड़ाई लड़ रहे हो। क्या तुम्हारा जोश इतनी जल्द ठंडा हो गया? क्या तुम्हारी इंसाफ की तलवार की प्यास इतनी जल्द बुझ गयी? तुम खूब जानते हो कि इंसाफ और सच्चाई की जीत जरूर होगी, तुम्हारी इन बहादुरियों का इनाम खुदा के दरबार से जरूर मिलेगा। फिर अभी से क्यों हौसले छोड़े देते हो? क्या बात है, अगर अमीर पुरतदबीर बड़ा दिलेर और इरादे का पक्का सिपाही है? अगर वह शेर है तो तुम शेर मर्द हो; अगर उसकी तलवार लोहे की है तो तुम्हारा तेगा फौलाद का है; अगर उसके सिपाही जान पर खेलनेवाले हैं तो तुम्हारे सिपाही भी सर कटाने के लिए तैयार हैं। हाथों में तेगा मजबूत पकड़ो और खुदा का नाम लेकर दुश्मन पर टूट पड़ो। तुम्हारे तेवर कहे देते हैं कि मैदान तुम्हारा है।
इस पुरजोश, तकरीर ने सरदारों के हौसले उभार दिये। उनकी आंखें लाल हो गईं, तलवारें पहलू बदलने लगीं और कदम बरबस लड़ाई के मैदान की तरफ बढ़े। शेख मखमूर ने तब फकीरी बाना उतार फेंका, फकीरी प्याले को सलाम किया और हाथों में वही तलवार और ढाल लेकर, जो किसी वक्त मसऊद से छिन गये थे, सरदार नमकखोर के साथ-साथ सिपाहियों और अफसरों का दिल बढ़ाते शेरों की तरह बिफरता हुआ चला। आधी रात का वक्त था, अमीर के सिपाही अभी मंजिलें मारे चले आते थे। बेचारे दम भी न लेने पाये थे कि एकाएक सरदार नमकखोर के आ पहुँचने की खबर पाई। होश उड़ गये और हिम्मतें टूट गईं। मगर अमीर शेर की तरह गरजकर खेमे से बाहर आया और दम के दम में अपनी सारी फौज दुश्मन के मुकाबले में कतार बॉँधकर खड़ी कर दी कि जैसे माली था कि आया और इधर-उधर बिखरे हुए फूलों को एक गुलदस्ते में सजा गया।
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