कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 41 प्रेमचन्द की कहानियाँ 41प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का इकतालीसवाँ भाग
मसऊद ने फकीरों का भेष अख्तियार किया, सर पर लोहे की टोपी के बजाय लम्बी जटाएं बनायीं, जिस्म पर जिरहबख्तर के बजाय गेरुए रंगा का बाना सजा हाथ में तलवार के बजाय फकीरों का प्याला लिया। जंग के नारे के बजाय फकीरों की सदा बुलन्द की ओर अपना नाम शेख मखमूर रख दिया। मगर यह जोगी दूसरे जोगियों की तरह धूनी रमाकर न बैठा और न उस तरह का प्रचार शुरू किया। वह दुश्मन की फौज में जाता और सिपाहियों की बातें सुनता। कभी उनकी मोर्चेबन्दियों पर निगाह दौड़ाता, कभी उनके दमदमों और किलों की दीवारों का मुआइना करता। तीन बार सरदार नमकखोर दुश्मन के पंजे से ऐसे वक्त निकले जबकि उन्हें जान बचने की कोई आस न रही थी। और यह सब शेख मखमूर की करामात थी। मिनकाद का किला जीतना कोई आसान बात न थी। पाँच हजार बहादुर सिपाही उसकी हिफाजत के लिए कुर्बान होने को तैयार बैठे थे। तीस तोपें आग के गोले उगलने के लिये मुंह खोले हुए थीं और दो हजार सधे हुए तीरन्दाज हाथों में मौत का पैगाम लिये हुए हुक्म का इन्तजार कर रहे थे। मगर जिस वक्त सरदार नमकखोर अपने दो हजार बहादुरों के साथ इस किले पर चढ़ाई को गये और तीरन्दाजों के तीर हवा में उड़ने लगे। और वह सब शेख मखमूर की करामात थी। शाह साहब वहीं मौजूद थे। सरदार दौड़कर उनके कदमों पर गिर पड़ा और उनके पैरों की धूल माथे पर लगायी।
किशवरकुशा दोयम का दरवार सजा हुआ है। अंगूरी शराब का दौर चल रहा है और दरबार के बड़े-बड़े अमीर और रईस अपने दर्जे के हिसाब से अदब के साथ घुटना मोड़े बैठे हैं। यकायक भेदियों ने खबर दी कि मीर शुजा की हार हुई और जान से मारे गये। यह सुनकर किशवरकुशा के चेहरे पर चिन्ता की लकीरें उभर आईं, बोले- ऐसा दिलेर कौन है जो इस बदमाश सरदार का सर कलम करके हमारे सामने पेश करे। इसकी गुस्ताखियॉँ अब हद से आगे बढ़ी जाती हैं। आप ही लोगों के बड़े-बूढ़ों ने यह मुल्क तलवार के जोर से मुरादिया खानदान से छीना था। क्या आप उन्हीं पुरखों की औलाद नहीं है? यह सुनते ही सरदारों में एक सन्नाटा छा गया, सबके चेहरे पर हवाइयॉँ उड़ने लगीं और किसी की हिम्मत न पड़ी कि बादशाह की दावत कबूल करे। आखिरकार शाह किशवरकुशा के बुड्ढे चचा खुद उठे और बोले- ऐ शाह जवॉँबख्त! मैं तेरी दावत कबूल करता हूँ, अगरचे मैं बुड्ढा हो गया हूँ और बाजुओं में तलवार पकड़ने की ताकत बाकी नहीं रही, मगर मेरे खून में वही गर्मी और दिल में वही जोश है जिसकी बदौलत हमने यह मुल्क शाह बामुराद से लिया था। या तो मैं इस नापाक कुत्ते की हस्ती खाक में मिला दूँगा या इस कोशिश में अपनी जान निसार कर दूँगा, ताकि अपनी आँखों से सल्तनत की बर्बादी न देखूँ। यह कहकर अमीर पुरतदबीर वहॉँ से उठा और मुस्तैदी से जंगी तैयारियों में लग गया। उसे मालूम था कि यह आखिरी मुकाबिला है और अगर इसमें नाकाम रहे तो मर जाने के सिवाय और कोई चारा नहीं है।
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