लोगों की राय

कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 41

प्रेमचन्द की कहानियाँ 41

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :224
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9802

Like this Hindi book 10 पाठकों को प्रिय

146 पाठक हैं

प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का इकतालीसवाँ भाग


राजगद्दी के तीसरे दिन मसऊद खुदा की इबादत में बैठा हुआ था कि मलिका शेर अफगान अकेले उसके पास आयी और बोली- मसऊद, मैं एक नाचीज तोहफा तुम्हारे लिए लायी हूँ और वह मेरा दिल है। क्या तुम उसे मेरे हाथ से कबूल करोगे? मसऊद अचम्भे से ताकता रह गया, मगर जब मलिका की आँखें मुहब्बत के नशे में डूबी हुई पायी तो चाव के मारे उठा और उसे सीने से लगाकर बोला- मैं तो मुद्दत से तुम्हारी बर्छी की नोक का घायल हूँ, मेरी किस्मत है कि आज तुम मरहम रखने आयी हो।

मुल्के जन्नतनिशॉँ अब आजादी और खुशहाली का घर है। मलिका शेर अफगान को अभी गद्दी पर बैठे साल भर से ज्यादा नहीं गुजरा मगर सल्तनत का कारबार बहुत अच्छी तरह और खूबी से चल रहा है और इस बड़े काम में उसका प्यारा शौहर मसऊद, जो अभी तक फकीर मखमूर के नाम से मशहूर है, उसका सलाहकार और मददगार है।

रात का वक्त था, शाही दरबार सजा हुआ था, बड़े-बड़े वजीर अपने पद के अनुसार बैठे हुए थे और नौकर जर्क-बर्क वर्दियॉँ पहने हाथ बॉँधे खड़े थे कि एक खिदमतगार ने आकर अर्ज की- दोनों जहान की मलिका, एक गरीब औरत बाहर खड़ी है और आपके कदमों का बोसा लेने की गुजारिश करती है। दरबारी चौंके और मलिका ने ताज्जुब-भरे लहजे में कहा- अन्दर हाजिर करो। खिदमतगार बाहर चला गया और जरा देर में एक बुढ़िया लाठी टेकती हुई आयी और अपनी पिटारी से एक जड़ाऊ ताज निकालकर बोली तुम लोग इसे ले लो, अब यह मेरे किसी काम का नहीं रहा। मियॉँ ने मरते वक्त इसे मसऊद को देकर कहा था कि तुम इसके मालिक हो, मगर अपने जिगर के टुकड़े मसऊद को कहाँ ढूँढूँ? रोते-रोते अंधी हो गयी, सारी दुनिया की खाक छानी, मगर उसका कहीं पता न लगा। अब जिंदगी से तंग आ गयी हूँ, जीकर क्या करूँगी? यह अमानत मेरे पास है, जिसका जी चाहे ले लो।

दरबार में सन्नाटा छा गया। लोग हैरत के मारे मूरत बन गये, कि जैसे एक जादूगर था जो उँगली के इशारे से सबका दम बन्द किए हुआ था। यकाएक मसऊद अपनी जगह से उठा और रोता हुआ जाकर रिन्दा के पैरों पर गिर पड़ा। रिन्दा अपने जिगर के टुकड़े को देखते ही पहचान गयी; उसे छाती से लगा लिया और वह जड़ाऊ ताज उसके सर पर रखकर बोली- साहबो, यही प्यारा मसऊद और शाहे बामुराद का बेटा है, तुम लोग इसकी रिआया हो, यह ताज इसका है, यह मुल्क इसका है और सारी खिलकत इसकी है। आज से वह अपने मुल्क का बादशाह है, अपनी कौम का खादिम।

दरबार में कयामत का शोर मचने लगा, दरबारी उठे और मसऊद को हाथों-हाथ ले जाकर तख्त पर मलिका शेर अफगान के बगल में बिठा दिया। भेंटें दी जाने लगीं, सलामियॉँ दगने लगीं, नफीरियों ने खुशी का गीत गाया और बाजों ने जीत का शोर मचाया। मगर जब जोश की यह खुशी जरा कम हुई और लोगों ने रिन्दा को देखा तो वह मर गयी थी। आरजुओं के पूरे होते ही जान निकल गयी। गोया आरजुएँ रूह बनकर उसके मिट्टी के तन को जिन्दा रखे हुए थीं।

0 0 0

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book