लोगों की राय

कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 41

प्रेमचन्द की कहानियाँ 41

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :224
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9802

Like this Hindi book 10 पाठकों को प्रिय

146 पाठक हैं

प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का इकतालीसवाँ भाग


मैं- इस फन में बिल्कुल कोरा हूं वर्ना आपकी फरमाइश जरूर पूरी करता।

इसके बाद मैंने बहुत आग्रह किया मगर मेहर सिंह झेंपता ही रहा। मुझे स्वभावत: शिष्टाचार से घृणा है। हालांकि इस वक्त मुझे रूखा होने का कोई हक न था मगर जब मैंने देखा कि यह किसी तरह न मानेगा तो जरा रुखाई से बोला- खैर, जाने दीजिए। मुझे अफसोस है कि मैंने आप का बहुत वक्त बर्बाद किया। माफ कीजिए।

यह कहकर उठ खड़ा हुआ। मेरी रोनी सूरत देखकर शायद मेहर सिंह को उस वक्त तरस आ गया, उसने झेंपते हुए मेरा हाथ पकड़ लिया और बोला- आप तो नाराज हुए जाते हैं।

मैं- मुझे आपसे नाराज होने का हक हासिल नहीं।

मेहरसिंह- अच्छा बैठ जाइए, मैं आपकी फरमाइश पूरी करुंगा। मगर मैं अभी बिलकुल अनाड़ी हूं।

मैं बैठ गया और मेहरसिंह ने हारमोनियम पर वही गीत अलापना शुरु किया:

पिया मिलन है कठिन बावरी।

कैसी सुरीली तान थी, कैसी मीठी आवाज, कैसा बेचैन करने वाला भाव! उसके गले में वह रस था जिसका बयान नहीं हो सकता। मैंने देखा कि गाते-गाते खुद उसकी आंखों में आंसू भर आये। मुझ पर इस वक्त एक मोहक सपने की-सी दशा छाई हुई थी। एक बहुत मीठा नाजुक, दर्दनाक असर दिल पर हो रहा था जिसे बयान नहीं किया जा सकता। एक हरे-भरे मैदान का नक्शा आंखों के सामने खिंच गया और लीला, प्यारी लीला इस मैदान पर बैठी हुई मेरी तरफ हसरतनाक आंखों से ताक रही थी। मैंने एक लम्बी आह भरी और बिना कुछ कहे उठ खड़ा हुआ। इस वक्त मेहर सिंह ने मेरी तरफ ताका, उसकी आंखों में मोती के कतरे डबडबाये हुए थे और बोला- कभी-कभी तशरीफ लाया कीजिएगा।

मैंने सिर्फ इतना जबाव दिया- मैं आपका बहुत कृतज्ञ हूं।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book