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प्रेमचन्द की कहानियाँ 42

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :156
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9803

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का बयालीसवाँ भाग


दूसरे दिन आप अल्लसबा सुबह ही फ़र्ते मसर्रत (हर्षातिरेक) से हैट हिलाते हुए, मिस लैला के कमरे में दाखिल हुए तो देखा कि बाग़ीचा की तरफ़ खरामे-खरामे जा रही है और राबिन उसके पीछे चला जाता है। आप फ़ौरन बागीचा की तरफ़ चले और लपककर लैला के सामने जा पहुँचे। 'गुड मार्निंग' के बाद पहला सवाल आपने यही किया- ''राबिन की तबियत अब कैसी है?''

लैला- ''कुछ अच्छी नहीं मालूम होती। रात-भर बहुत सुस्त रहा।''

हरबर्ट- ''वाकई?''

लैला- ''जी हाँ, नहीं मालूम क्या खा गया है या खुदा जाने क्या बीमारी पैदा हो गई है। अगर यही हाल रहा तो मिस्टर बारटन को क्या जवाब दूँगी?''

हरबर्ट ने दर्दमंद निगाहों से राबिन को देखा, और नजदीक आकर दिलेरी के साथ उसका कान पकड़कर खींचा, गोया नींद से जगाने की कोशिश कर रहे हैं। यह एक बहुत मामूली बात थी, मगर दूसरा एक निहायत गैरमामूली नतीजा निकला। एक बम का गोला फट गया और हवा अजीबो-गरीब आवाज से गूँज उठी। राबिन एक रबड़ की गेंद की तरह उछल पड़ा और हरबर्ट की तरफ़ लपका। लार्ड हरबर्ट को अब बगैर चारों खाने चित्त गिरने के और कोई सूरत नज़र न आई। आप गिरे नीचे, आप ऊपर कुर्सी और जब इस बम के गोले के सदमे के बाद होश आया तो क्या देखते हैं कि राबिन शोलाबाज़ आखों से इनकी तरफ़ घूर-घूरकर गुर्रा रहा है और लैला जोर से इसके गरदन का तसमा पकडकर रोके हुए हैं। आप जल्दी से उठ खड़े हुए। मिस लैला ने बिगड़कर कहा- ''आपने क्यों इसका कान खींचा? मैंने कहा नहीं था कि वह बीमार है?''

लार्ड हरबर्ट (बदहवासी से)- ''मुझे मुझे ख्याल... ''

लैला ने हाँफकर कहा- ''भागो, दौड़ो-मैं छोड़े देती हूँ। मुझ से नहीं सँभल सकता। और तेज भागो, तेज निकल जाओ।''

लार्ड हरबर्ट भागे। पसीना में सराबोर। हाथ-पाँव थर-थर काँप रहे थे और दिल धड़क रहा था। दिल-ही-दिल में कहे जाते हैं- ''आज सख्त खफ़ीफ़ (लज्जित) हुए। अब मेरा रंग जमना मुहाल (नामुमकिन) है। अब बाजी हाथ से जाती रही। यह सब बदमाश हरामखोर काक की शरारत है।''

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