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प्रेमचन्द की कहानियाँ 42

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :156
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9803

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का बयालीसवाँ भाग


यह ख्याल आते ही आप बाहर निकल आए। सिगरेट जलाया और काक के मकान की तरफ़ चले तो क्या देखा कि वह सफ़ेद कुत्ता, जिसे काक ने कल दिखाया था, आहिस्ता-आहिस्ता सर झुकाए चला जा रहा है। पूरा यकीन हो गया कि जालिम काक ने पटेबाज़ी की, मगर कहरे दरवेश बर जाने दरवेश (गरीब का गुस्सा ग़रीब की जान पर)। फिर भी वो काक के पास गए। झल्लाए, चिल्लाए। लानत-ओ-मलामत की, धमकाया, दगाबाज, हरामखोर, सब कुछ कहा, मगर यह सब हारे हुए जुवारी का गुस्सा था।

काक ने परवाह तक न की। बोला- ''हुजूर, मैंने रंग तब्दीली करने के लिए रुपए लिए थे। मिजाज का तब्दील करना इंसान के अख्तियार से बाहर है। खुदा जाने मिस साहब कुत्तों को क्या सिखा देती हैं कि कैसा ही सीधा कुत्ता हो, उनके साथ रहते ही शेर हो जाता है।''

दो हफ्ते के बाद राक मोटरकार मिस लिली के दरवाजे पर आकर रुकी 'लार? जान बारटन नीचे उतरा। खानसामा ने आकर ताज़ीम (अदब) से सलाम किया। बारटन ने पूछा- ''कहो, यहाँ क्या हाल है? ''

काक- ''हुजूर सब खैरियत है। मिस साहबा झील के किनारे टहलने गई हैं। राबिन भी उनके साथ है। आप तो खैरियत से हैं?''

बारटन- ''और लार्ड हरबर्ट कहाँ हैं?''

काक (मुसकराकर)- ''उनका कुछ हाल न पूछिए। राबिन ने उनका मोरचा हटा दिया।'' बारटन - ''क्या अब वो यहाँ नहीं हैं?''

काक- ''जी, उन्हें गए तो आज आठवाँ दिन है।''

बारटन की जान में जान आर्ड। उसने झील तक जाकर लिली से मुलाकात करने का इरादा किया और झिझकता हुआ जा पहुँचा। मिस लिली झील के किनारे खड़ी राबिन को बत्तखों पर दौड़ने के लिए इशारा कर रही थी। बारटन को देखकर उसने सर्दमेहरी (वेदिली) के साथ, जो बारटन के हौसलों को खाक़ में मिला दिया करता था, इसके सलाम का जवाब दिया। मगर राबिन दौड़ा-दौड़ा दुम हिलाकर बड़ी सरगर्मी से इजहारे-मुसर्रत करने लगा। लिली की यही मतानत (संजीदगी), यही रुखाई बारटन को सर्द कर दिया करती थी।

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